कैसे साकार होगा कुशवाहा सीएम का सपना
एक दशक से कुशवाहा समाज का सपना रहा है कि एक बार उसका अपना मुख्यमंत्री बने। उपेंद्र कुशवाहा ने समाज को संगठित करने का भरसक प्रयास किया। कैसे पूरा होगा सपना?
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संजय वर्मा
उपेंद्र कुशवाहा को सीएम बना कर रहेंगे का दावा करनेवाले नागमणि और श्रीभगवान सिंह अब राजनीति के हाशिये पर हैं। सम्भव है आगे चलकर फिर राजनीति में कद-पद दोनों प्राप्त कर लें, पर उनके सीएम उम्मीदवार उपेन्द्र कुशवाहा ने नया ठिकाना जदयू को बना लिया। विधानसभा चुनाव में शिकस्त के बाद वो चाहते तो अपनी पार्टी के जरिये कुशवाहा पॉलिटिक्स के साथ अपनी अलग विशिष्ट पहचान रख संघर्ष का रास्ता अपना सकते थे, पर उन्होंने नीतीश कुमार के जदयू में अपनी पार्टी रालोसपा का विलय कर दिया।
उपेंद्र कुशवाहा का खूब स्वागत हुआ।संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया। एमएलसी भी मनोनीत हो गए। कयास लगाया जा रहा था कि उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल कर शिक्षा विभाग का मंत्री बनाया जाएगा। उनके समर्थक दावा कर रहे थे कि बात हो गई है डिप्टी सीएम बनेंगे, पर कुशवाहा को विधान परिषद की पर्यटन विकास कमिटी का सभापति पद ही मिल सका। हालांकि, इससे कुशवाहा संतुष्ट हैं या नाराज, कहना मुश्किल है। वैसे फिलहाल उनके पास कोई विकल्प भी नहीं है।
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उपेंद्र कुशवाहा को एक समय मुख्यमंत्री के रूप में लोगों ने देखा था। उनकी पहचान आज भी कुशवाहा समाज के बड़े नेता के रूप में है। राजनीति में कब किसका समय आए, यह कहा नहीं जा सकता। नीति आयोग के मानकों पर जब बिहार सबसे नीचे आया, तो सुशासन और नीतीश कुमार के पक्ष में कुशवाहा खुलकर सामने आए। उन्होंने मोदी सरकार से विशेष दर्जा की मांग की। इसलिए, यह सोचना कि उपेंद्र कुशवाहा अब चुक गए हैं, जल्दबाजी होगी।
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सवाल है कुशवाहा के साथ लंबे संघर्ष में साथी रहे उनका भविष्य क्या होगा। देखना होगा कि कब समर्थकों को सत्ता और संगठन में समायोजित किया जाता है। ऐसे साथियों की संख्या लगभग 30 है। पूर्व विधायक विनोद यादव, शंकर झा आज़ाद, माधव आनन्द, सीमा सक्सेना, अंगद कुशवाहा, फ़ज़ल इमाम मल्लिक, सन्तोष कुशवाहा, भोला शर्मा को फिलहाल सब्र रखना होगा। वैसे, कुशवाहा समाज को अपने मुख्यमंत्री के लिए लगता है अभी कुछ और इंतजार करना हेगा।