कांवड़ यात्रा के रूट पर दुकानदारों को नाम लिखने के लिए बाध्य करने का विरोध बढ़ता जा रहा है। विरोध अब आंदोलन का रूप लेता जा रहा है। इंडिया गठबंधन के विरोध के बाद एनडीए के दलों ने भी विरोध किया है। यूपी एनडीए के बाद बिहार एनडीए नेताओं ने भी योगी सरकार के फरमान का विरोध किया है। सोशल मीडिया पर शुरू हुए विरोध का असर अब जमीन पर भी दिखने लगा है।
लोग अब समझ चुके हैं कि भाजपा अंग्रेजों के बांटो और राज करो की नीति पर चल रही है। अंग्रेजों ने कभी पानी को भी बांट दिया था। उसने हिंदू-पानी और मुस्लिम पानी का फरमान दिया था। 1929 में अंग्रेजी हुकूमत ने फरमान जारी किया था कि चौराहों, रेलवे स्टेशनों पर एक ही प्याऊ नहीं रहेगा, बल्कि हिंदू पानी और मुस्लिम पानी अलग-अलग बंटेगा। तब मौलाना हबीबुर्रहमान लुधियानवी ने अंग्रेजी फरमान के खिलाफ आम लोगों को संगठित करके जबरदस्त प्रतिवाद किया था। प्रतिवाद इतना बढ़ा कि अंग्रेजी सरकार को आदेश वापस करना पड़ा। फिर से एक ही पानी सभी पीने लगे। लोगों ने नया बैनर लगाया था- सबका पानी एक है।
————-
मुख्यमंत्री ने विधि व्यव्स्था की समीक्षा की, दिए 8 आदेश
अब आम लोग कह रहे हैं कि भाजपा सरकार समाज को बांटना चाहती है और इसका विरोध सड़क पर उतर कर करना होगा। आम लोग तक कह रहे हैं कि महंगाई, बेरोजगारी जैसे बुनियादी सवालों को हल करने में पूरी तरह विफल भाजपा सरकार अब खुल कर सांप्रदायिक कार्ड खेल रही है। लोग कह रहे हैं कि यही है विनाश काले विपरीत बुद्धि। कांग्रेस तथा सपा ने योगी सरकार के इस फैसले के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है। अगले महीने उप्र में विधानसभा की दस सीटों पर उपचुनाव है। उससे पहले ही सपा और कांग्रेस कार्यकर्ता सड़क पर उतर कर विरोध करने की रणनीति बना रहे हैं। इन दोनों दलों को भी मालूम है कि जनांदोलन नहीं किया गया तो उप्र को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने की साजिश की जा रही है, जो देश की एकता, भाईचारे के लिए खतरनाक होगा।