प्रगतिशील लेखक संघ की पटना इकाई ने साहित्यकार और आलोचक खगेंद्र ठाकुर की स्मृति में विमर्श का आयोजन किया गया। विमर्श का विषय था ‘सृजनात्मकता और विचारधारा’।

विषय प्रवेश करते हुए पटना प्रगतिशील लेखक संघ के कार्यकारी सचिव जयप्रकाश ने कहा ” आजकल यह कहा जाता है कि नाटक और साहित्य में विचारधारा की जरूरत नहीं है। सृजनशील लोगों को विचारधारा  से दूर रहने की सलाह दी जाती है।  विचारधारा से ज्यादातर आशय मार्क्सवाद का रहा करता है।  पटना कलम के चित्रों में आम लोगों के चित्र दिखते हैं। बाबा नागार्जुन और रामवृक्ष बेनीपुरी जैसे साहित्यकार तो सीधे सीधे आंदोलन से जुड़े थे।”

बंग्ला कवि बिद्युतपाल  ने कहा महान संगीतकार ज्यां सेबेस्टियन बाख जब संगीत की रचना कर रहे थे तब तर्कवाद का बोलबाला था। बाख जब तर्कवाद के बारे में जाना, पढ़ा तो उनको लगा कि क्या मैं जो संगीत रचना कर रहा हूं उसमें तर्क है। इस कारण उन्होंने सात साल तक कोई संगीत रचना नहीं की थी। कई बार लगता है कि जो काम हम कहना चाहते हैं वह कहा नहीं जा पा रहा है। इस बात को व्यावहारिक होकर जी हल  किया जा सकता है। 1990 के पहले यह जो नैरेटिव था की नया जमाना आएगा, कमाने वाला खाएगा।  ब्राजील के वर्ल्ड सोशल फोरम में यह नारा आया कि दूसरी दुनिया संभव है।  आज भी लड़ाई जारी है।

पटना साइंस कॉलेज में अंग्रेजी साहित्य के प्राध्यापक शोभन चक्रवर्ती ने बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहा ” हमारे कल्चरल स्फीयर में पूर्ण नियंत्रण के फासिस्ट चरण में आ चुके हैं। हमारी मानसिकता उधारी की मानसिकता है। हमारी आर्थिक व्यवस्था के कारण खानपान, पहनने में भी तब्दीली  आ गई है। एक सम्पूर्ण संस्कृति को थोपने की कोशिश की जा रही है। लेकिन उम्मीद अभी भी बंधी हुई है। जिन्दगी सैद्धांतिक बातों से नहीं चलता। 1990 से पहले सृजनात्मकता के प्रति दूसरा नजरिया था। गंभीर साहित्यिक के बदले आजकल नकली कविता लिखी जा रही है। फैज के ‘हम देखेंगे..’  आई नकल उतारी जा रही है। सोवियत संघ से भी एक खास सिद्धांत को  प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है।”

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कॉमर्स कॉलेज में उर्दू साहित्य के विभागध्यक्ष सफदर इमाम कादरी ने कहा ” हम सब लोगों का प्रशिक्षण खगेंद्र ठाकुर से हुआ।  पटना में जिन लोगों को देखा और सीखने का अवसर उसमें खगेंद्र ठाकुर प्रमुख हैं। आज हम लोग ऐसे विषय पर बात कर रहे हैं इसके लिए खगेंद्र ठाकुर आदर्श व्यक्तित्व थे।

कवि आदित्य कमल, सामाजिक कार्यकर्ता अक्षय, इस्कफ नेता आनंद शर्मा ने भी अपनी बातें रखीं। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रगतिशील लेखक संघ के अध्यक्ष मंडली के सदस्य संतोष दीक्षित ने कहा ”  मैं एक सृजनशील व्यक्ति हूं। लेखक अपना खाद पानी कहां से लेगा इसे लेकर उसे बेहद सतर्क रहना होगा। हमलोग जब मैट्रिक पास कर पढ़ा करते थे कि पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है। राज कपूर की फिल्में आ रही थीं। इन सबने हमारे मानसिक गठन को बनाया। हम वर्ग संघर्ष की बात करते हैं लेकिन जातिवादी दलों के पीछे चलने को पार्टी मजबूर है। ऐसा साहित्य जो जनता के संघर्षों के साहित्य को सामने लाने से कैसे रोका जाए इसकी कोशिश हो रही है। लुकाच ने कहा था लेखक को विचलन पैदा करना चाहिए।  यदि आसपास जो भयावह यथार्थ है इससे मुंह मोड़कर प्रेम कविताएं लिखी जा रही है। प्रलेस के राज्य कार्यकारिणी सदस्य गजेंद्र कांत शर्मा ने प्राचीन इतिहासकार के प्रोफेसर रहे ओ पी जायसवाल का खगेंद्र ठाकुर पर लिखा संदेश पढ़कर सुनाया।

By Editor


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