खगेंद्र ठाकुर स्मृति व्याखान : सांप्रदायिकता विरोधी संघर्ष की मूल बात
प्रगतिशील लेखक संघ ने खगेंद्र ठाकुर स्मृति व्याखान का आयोजन किया। मार्क्सवादी विचारक अनिल राजिमवाले ने सांप्रदायिकता विरोधी संघर्ष की मूल बातों पर की चर्चा।
मार्क्सवादी चिंतक अनिल राजिमवाले ने पटना में खगेंद्र ठाकुर स्मृति व्याखान को संबोधित करते हुए कहा कि साम्प्रदायिकता से लड़ने के लिए सबसे आवश्यक है जनता के मानस पर प्रभाव डालना। फासिस्टों ने इसे सबसे पहले समझा। भारत में इस बात को गांधी तथा पी. सी. जोशी ने सबसे अधिक समझा। साम्प्रदायिकता की मास साइकोलॉजी का इस्तेमाल हिटलर ने जर्मनी में किया था। 2014 से पहले मास साइकोलॉजी पर साम्प्रदायिक शक्तियों का कब्जा हो गया था। मास सायकोलॉजी पर सबसे पहले वाम बुद्धिजीवियों को काम करना था लेकिन छद्म क्रांतिकारिता के प्रभाववश नेहरू को ही निशाना बना डाला गया, जिसका नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
सेक्युलरिज्म और सोशलिज्म के आधार को नरेंद्र मोदी तोड़ना चाहते हैं। इसे हिन्दू साम्प्रदायिक संविधान बनाना चाहते हैं। इसी जनतंत्र के तहत कम्युनिस्ट सरकारें 34 सालों तक रही हैं जो एक रिकॉर्ड रहा है। इस देश में 500 दल हैं और सभी फलफूल रहे हैं। इतने धर्म, पत्र -पत्रिकाएं जितनी भारत में है उतनी कहीं नहीं हैं। आज साम्प्रदायिक शक्तियां सत्ता पर कब्जे के बाद सत्ता में घुसपैठ करने की कोशिश कर रही हैं।
कार्यक्रम को कथाकार संतोष दीक्षित ने भी संबोधित किया। प्रगतिशील लेखक संघ के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव राजेंद्र राजन, खगेंद्र ठाकुर के पुत्र भास्कर, नरेंद्र पाठक , साहित्यकार प्रेम कुमार मणि, रानी श्रीवास्तव, इरफ़ान अहमद फातमी, सुमंत शरण, सुनीता गुप्ता, कुमार सर्वेश, ललन लालित्य, बाल मुकुंद, गोपाल शर्मा, अरविन्द चौधरी, डीपी यादव, सत्येंद्र कुमार,अशोक गुप्ता, प्राच्य प्रभा के संपादक विजय कुमार सिंह गजेंद्रकान्त शर्मा, सुरेन्द्र त्रिपाठी, अरुण शाद्धल, अजय मंजू कुमार, अरुण शाद्वल, कुलभूषण गोपाल, प्रमोद यादव, जीतेन्द्र कुमार, जौहर इस अवसर पर उपस्थित थे। कार्यक्रम बिहार प्रगतिशील लेखक संघ’ की ओर से बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ, जमाल रोड, पटना के सभागार में किया गया था। स्वागत वक्तव्य प्रलेस के राज्य महासचिव रवींद्र नाथ राय ने किया।
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