Kumar Ravi ऐसा IAS जिनने गुमनामी से निकल अमिट छाप छोड़ी
2018 तक kumar Ravi, आईएएस अफसरों की भीड़ में एक गुमान सा चेहरा थे. एक जूनिर आईएएस अफसर जो अपने लिए जिम्मेदारी भरे अवसर के इंतजार में तो था लेकिन उन पर सरकार की नजर नहीं पड़ी थी. तब संजय अग्रवाल पटना के डीएम के रूप में अपनी मजबूत पहचान बना चुके थे.
लेकिन 2018 कुमार रवि के लिए अवसर और चुनौतियां दोनों एक साथ ले कर आया. अवसर इसलिए कि राजधानी पटना का डीएम बनना किसी भी आईएएस अफसर के लिए गर्व की बात होती है. और चुनौतियां इसलिए कि पटना डीएम का पद संभालने के कुछ ही समय बाद पटना शहर एक मानवनिर्मित, परंतु भयावह और ऐतिहासिक जलजमाव का ऐसा शिकार हुआ कि बिहार के प्रशासनिक हलके को दुनिया भर में बदनामी झेलनी पड़ी.
तब मुझे याद है कि एक सांवला और ढ़ीला-ढ़ाला कद काठी का लम्बा सा शख्स अपनी आंखों पर बड़े फ्रेम के चश्मे में यूट्यूब चैनलों में लगातार दिख रहा है. वह, बदबूदार और सड़ांध भरे पानी में खुद ही उतर जाता है और राजेंद्रनगर की पॉश कालोनियों में मरे हुए पशुओं को अपनी निगरानी में ठिकाने लगवाता है. तब तक मुझे यह गुमान हुआ करता था कि शायद वह ( कुमार रवि) नगर निगम का कोई बड़ा मुलाजिम हों. लेकिन कुछ ही दिनों बाद एक विडियो क्लिप वायरल होता है जिसमें तत्कालीन उपमुख्यमंत्री हॉफ पैंट में अपनी पत्नी व बेटी के साथ रेस्क्यु कर के राजेंद्रनगर के धनुष पुल पर लाये गये हैं. इस विडियो में भी वही सांवाला सा, ढ़ीला-ढाला शक्स बैक ग्राउंड में दिख रहा है. वह कुमार रवि थे. मेरी तरह, हजारों लोग तब तक इसी वहम के शिकार रहे होंगे. मैं दंग था. लेकिन कुमार रवि की जमीन से जुड़े होने, नेतृत्व को खुद अपने हाथ में ले कर चुनौतिों से जूझने की प्रेरणा अपने मातहतों में भरने की एक झलक थी.
तब कुमार रवि ऐसे समय में अपनी पहचान गढ़ रहे थे, जब सारा देश नौकरशाही की बजबजाती हुई सड़ांध को पटना के भीषण जलजमाव के रूप में महसूस कर रहा था. यह मानवनिर्मित आपदा थी जिसे आईएएस अफसरों के नाकारेपन ने पटना के लिए ‘जलप्रलय’ बना डाला था.
हालांकि इस चुनौती से निलकलने में कोई दो हफ्ते लगे होंगे. लेकिन कुमार रवि यूट्यूब चैनलों के दर्शकों में अपनी पहचान गढ़ चुके थे. इसके बाद वाले वर्ष में पटना के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ की चुनौतियां थी. तब भी बांधों पर अपनी पतलून समेटे कुमार रवि की तस्वीरें दिखती रहीं.
उसके बाद बारी कोरोना महामारी की थी. हम जैसे पत्रकार सुसान और डरावीनी सड़कों पर निकलते हुए सहमे-सहमे रहा करते थे. तब तमाम मंत्री और यहां तक कि वरिष्ठ अफसरान खुद को घरों की चहारदीवारों में छुपाये रहते थे लेकिन कुमार रवि मॉस्क और ग्लौव्स लगाये सड़कों पर डटे रहते थे. आम तौर पर सड़कों पर दौड़ते फिरने की ड्युटी आईपीएस अफसरों की होती है. लेकिन कुमार रवि ने कोरोना संकट के दौरान भी न सिर्फ काम किया, बल्कि डट के किया. इन्ही दिनों खबर आई कि रवि कोरोना की चपेट में भी आ गये हैं. उनके संक्रमित होने होने का संशय मैं अनेक बार अपने दोस्तों से व्यक्त भी कर चुका था. खैर. कुमार रवि ने इन विपरीत परिस्थितियों में भी बखूबी अपनी जिम्मेदारियों को निभाया.
और आज कुमार रवि बिहार की नौकरशाही में एक मजबूत पहचान के अफसर के रूप में स्थापित हो चुके हैं. उन्हें बिहार सरकार ने प्रोमोशन दिया है और अब पटना के डीएम के बजाये वह भवन निर्माण विभाग के सचिव बना दिये गये हैं.
आरोप
कुमार रवि नालंदा से हैं. किसी आईएएस अफसर के नालंदा से जुड़े होने के दो अर्थ आसानी से लगा लिये जाते हैं. उस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की खास नजर ए इनायत होगी. वह नाकाबिल होगा तब भी उसके गुनाह माफ होंगे और बड़ी जिम्मेदारी के योग्य समझा जायेगा. कुछ लोग कुमार रवि को इसी नजर से देखते हैं. लेकिन पटना के जलप्रलय और कोरोना काल के जो लोग गवाह हैं, उन्हें ऐसा सोचने के पहले कुमार रवि के योगदान पर गौर करना चाहिए.
कुमार रवि आईआईटी के पूर्वती छात्र यानी इंजीनियर रहे हैं. पिछले दिनों उनके योगदान पर खुद आईआईटी ने उन्हें सम्मानित भी किया था.
कुमार रवि को नये साल पर मिली उनकी जिम्मेदारियों के लिए शुभकामनायें.