उपेंद्र कुशवाहा ने मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह डबल गेम खेल दिया है। एक तरफ उन्होंने इशारों में भाजपा को निशाने पर लिया है तो दूसरी तरफ लालू प्रसाद की आलोचना करके यह भी जताया है कि वे एनडीए में रहते हुए अपनी स्वतंत्रता बनाए रखेंगे। वे समर्पण करने को तैयार नहीं है और आगे अपनी पार्टी को मजबूत करते हुए 2025 में अधिक राजनीतिक हिस्सेदारी का दावा पेश करने के लिए भूमिका भी तैयार कर दी है।

उपेंद्र कुशवाहा ने प्रेस वार्ता करके बताया कि पार्टी नेताओं के साथ दो दिनों तक बैठक हुई, जिसमें लोकसभा चुनाव की समीक्षा की गई। उन्होंने दो खास बातें कहीं, जिससे उनकी भावी राजनीति की एक झलक मिलती है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव का परिणाम अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा और एनडीए में जमीनी स्तर पर समन्वय का अभाव था। याद रहे खुद उपेंद्र कुशवाहा काराकाट में चुनाव हार गए। यही नहीं, वे तीसरे स्थान पर रहे। कारकाट में माले के राजाराम सिंह ने चुनाव में जीत हासिल की तथा दूसरे नंबर पर भाजपा के बागी निर्दलीय प्रत्याशी पवन सिंह रहे।

राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि एनडीए में समन्वय का अभाव रहा, जो दरअसल अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा की आलोचना है। भाजपा ने काराकाट में पवन सिंह को चुनाव मैदान से हटाने के लिए खास प्रयास नहीं किया। भाजपा को डर था कि पवन सिंह पर ज्यादा जबाव बनाया गया, तो राजपूत मतदाता भड़क सकते हैं, जिससे पार्टी को नुकसान हो सकता है।

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दरअसल 2025 बिहार विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए में अभी से खींचतान शुरू हो गई है। अगर उपेंद्र कुशवाहा भाजपा और जदयू पर दबाव नहीं बनाते हैं, तो उन्हें बहुत कम सीटें मिलेंगी। भाजपा-जदयू के बाद चिराग पासवान बड़े दावेदार होंगे। जीतनराम मांझी को भी सीटें चाहिए। उस स्थिति में कुशवाहा ने खासा दबाव नहीं बनाया, तो पार्टी का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।

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By Editor


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