अदालत में कॉलेजियम सिस्टम के खिलफ पटना में हुआ संखनाद
न्यायालयों में कॉलेजियम सिस्टम से जजों की नियुक्ति के खिलाफ लॉयर्स अगेंस्ट कॉलेजियम ने पटना में संखनाद किया और न्यायिक सेवा आयोग के गठन की मांग को दोहराया.
अधिवक्ता अरुण कुमार कुशवाहा के नेतृत्व में आयोजित इस कार्यक्रम में आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा भी शामिल हुए.
लॉयर्स अगेंस्ट कॉलेजियम ( Lawyers Against- Collegium) के नेता अरुण कुमार कुशवाहा ने घोषणा की कि जब तक कॉलेजियम सिस्टम का खात्मा नहीं हो जाता और न्यायिक सेवा आयोग का गठन नहीं हो जाता तब तक संघर्ष जारी रहेगा.
उपेंद्र कुशवाहा भी हुए शामिल
इस मौके पर उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि जजों की नियुक्त में कॉलेजियम सिस्टम तमाम गड़बडियों की जड़ है. गौरतलब है कि न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत जजों की टीम ही अन्य जजों की नियुक्ति करती है.
ऐसे में आरोप लगता रहा है कि जजों की नियुक्ति में जातिवाद और भाई भतीजा वाद का बोलबाला रहता है. इसलिए लायर्स अगेंस्ट कॉलेजियम की मांग है कि इस व्यवस्था को समाप्त करके न्यायिक सेवा आयोग का गठन किया जाना चाहिए ताकि जजों की नियुक्ति में पार्दर्शिता आ सके.
इस वर्ष पर सामाजिक कार्यकर्ता राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि भारतीय संविधान के मूल अनुच्छेद 312 के तहत भारतीय न्यायिक सेवा के गठन का प्रावधान किया है। इसे संविधान को लागू करने के समय ही अमल में लाना चाहिए था। लेकिन निहित स्वार्थ के कारण विभिन्न बहानेबाजी कर आजतक लागू नहीं की गई । इसे लागू करने की गम्भीरता न केन्द्र सरकार को है न सर्वोच्च न्यायालय को है। दोनों तरफ से नूरा कुश्ती हो रही है।
उल्लेखनीय है कि संविधान के अनुच्छेद 234 के तहत राज्य न्यायिक सेवा के माध्यम से जिला जज तक की नियुक्ति की जाती है जिसमें राज्य के आरक्षण नियम भी लागू हैं।
कालेजियम व्यवस्था विश्व के किसी लोकतांत्रिक देश में नहीं है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों एवं संविधान पर कुठाराघात की तरह है।
राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय देश के दलितों, पिछड़ों और मजलूम लोगों के हकों की संरक्षिका है, कस्टोडियन है। वह सरकार के द्वारा किए गए अन्याय के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करती है। पर वहाँ होने वाले अन्याय की फरियाद कहाँ होगी? इसकी याचिका भी सर्वोच्च न्यायालय में दायर की जाय।
बार कांउसिल देश भर में भारतीय न्यायिक सेवा के माध्यम से उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति हेतु जन जागरण अभियान चलाएं, जिले से लेकर देश के बार कांउसिल एवं सर्वोच्च न्यायालय तक का ध्यान अविरल रूप से दिलवाया जाय, तभी सरकार और न्यायालय इस मुद्दे पर कुछ करेगी।