श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव में अनुरा कुमारा दिसानायके ने जीत हासिल कर ली है। वे पहले वामपंथी नेता हैं, जो इस पद पर पहुंचे हैं। उन्होंने महंगाई, बेरोजगारी जैसे जनता के सवालों को चुनाव में मुद्दा बनाया था। अडानी को दिए गए ठेके भी चुनावी मुद्दा रहे। इसी के साथ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति पर सवाल उठ रहे हैं। इससे पहले बांग्लादेश में भारत के प्रति नरम रुख रखने वाली शेख हसीना के खिलाफ बड़ा छात्र आंदोलन हुआ, जिसमें उन्हें देश से भागना पड़ा। वहां मो. यूनुस अस्थायी सरकार के प्रमुख हैं। नेपाल से रिश्ते भी सहज नहीं हैं। यहां तक कि मालदीव जैसे छोटे से देश से भी रिश्ते में पहले वाली बात नहीं है। इस तरह भारत के पड़ोसियों में एक भी ऐसा देश नहीं है, जो प्रबल रूप से भारत समर्थक हो। सोशल मीडिया पर कई लोगों ने भारतीय उपमहाद्वीप में चीन के बढ़ते प्रभाव पर चिंता जताई है।
अनुरा कुमारा दिसानायके नेशनल पीपुल्स पावर गठबंधन के प्रत्याशी थे। उन्हें 42 प्रतिशत से अधिक मत मिले, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी साजिथ प्रेमदासा को केवल 23 प्रतिशत मत मिले। निवर्तमान राष्ट्रपति रनिल विक्रमासिंघे तीसरे स्थान पर रहे। वर्ष 2022 में आर्थिक रूप से दिवालिया होने तथा व्यापक जनांदोलन के बाद यह पहला चुनाव था, जिसमें मार्कसवादी नेता को जीत मिली।
56 वर्षीय दिसानायके का जन्म थंबूतेगामा में हुआ। उनका राजनीतिक कैरियर छात्र आंदोलन से शुरू हुआ। उन्होंने जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) ज्वाइन की। यह पार्टी 80 के दशक में हथियारबंद आंदोलन के लिए जानी गई। पार्टी ने साम्राज्यवादी तथा पूंजीवादी आर्थिक नीतियों का विरोध किया। इसीलिए वहां हुए बदलाव को लेकर कई तरह की चिंता की जा रही है, जिसमें अडानी को मिले प्रोजेक्ट भी शामिल हैं।
————–
पार्टी बनने से पहले ध्वस्त हुआ PK का मुस्लिम प्रोजेक्ट, मची भगदड़
भारत के वाम दलों ने श्रीलंका में वामपंथी सरकार बनने पर कहा कि यह जनांदोलनों की जीत है। अब वहां जनता के बुनियादी सवालों पर काम करने वाली सरकार आई है।
संघ से लड़ाई में राहुल और केजरीवाल में क्या है बुनियादी फर्क