परिवहन के नये-नये साधनों के बढ़ते प्रयोग के कारण ग्रामीण और दुर्गम स्थानों में सामान ढोने में अहम भूमिका निभाने वाले गधों की संख्या में भारी गिरावट हुयी है तथा देश में इनकी संख्या मात्र एक लाख 20 हजार रह गयी है।
देश में पशु गणना के ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले सात वर्ष में गधों की संख्या में 61.23 फीसदी की गिरावट आयी है। वर्ष 2012 में हुयी पिछली पशु गणना में इनकी संख्या तीन लाख 20 हजार थी जो अब घटकर एक लाख 20 हजार रह गयी है । इस दौरान गधों की संख्या ही नहीं ऊंट , घोड़े, टट्टू आैर खच्चरों की संख्या भी तेजी से घटी है। वर्ष 2012 की तुलना में वर्ष 2019 में घोड़ा , टट्टू और खच्चर की संख्या में 51.9 प्रतिशत की कमी आयी है । अब देश में इनकी संख्या 5.50 लाख रह गयी है ।
घोड़ा और टट्टू की संख्या वर्ष 2012 में छह लाख 20 हजार थी जो 45.58 प्रतिशत घटकर तीन लाख 40 हजार रह गयी है । दुर्गम स्थनों में रसद पहुंचाने में सेना की मदद करने वाले अश्व प्रजाति के खच्चरों की संख्या 57.9 प्रतिशत घटकर मात्र 80 हजार रह गयी है । वर्ष 2012 में इनकी संख्या दो लाख थी ।
गधों के लिए मशहूर राजस्थान में इनकी संख्या केवल 23 हजार ही बची है । वर्ष 2012 में राज्य में 81 हजार गधे थे । इनकी संख्या में 71.31 प्रतिशत की गिरावट आयी है । उत्तर प्रदेश में गधों की संख्या 57 हजार से 71.92 प्रतिशत घटकर 16 हजार रह गयी है । व्यावसायिक कारोबार के लिए प्रसिद्ध गुजरात में इसी अवधि में गधों की संख्या में 70.94 प्रतिशत घटी है । राज्य में इनकी संख्या 2012 में 39 हजार थी जो अब 11 हजार रह गयी है ।
महाराष्ट्र में गधों की संख्या 39.69 प्रतिशत घटकर 18 हजार , बिहार में 47.31 प्रतिशत घटकर 11 हजार , जम्मू कश्मीर में 44.55 प्रतिशत घटकर 10 हजार , कर्नाटक में 46.11 प्रतिशत घटकर नौ हजार , मध्य प्रदेश में 45.46 प्रतिशत घटकर आठ हजार , हिमाचल प्रदेश में 34.73 प्रतिशत घटकर पांच हजार और आन्ध्र प्रदेश 53.22 प्रतिशत घटकर पांच हजार रह गयी है ।
रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंट की संख्या 37.1 प्रतिशत घटकर मात्र ढाई लाख रह गयी है । वर्ष 2012 में इनकी संख्या चार लाख थी । वर्ष 2019 तक ऊंटनी की संख्या एक लाख 70 हजार और ऊंट की संख्या 80 हजार दर्ज की गयी है ।