मंत्रिमंडल विस्तार : चिराग से बदले की जदयू ने चुकाई कीमत!
2019 में मोदी मंत्रिमंडल में जदयू को एक स्थान मिल रहा था, तब पार्टी ने मना कर दिया था। आज भी एक ही स्थान मिला। आखिर जदयू ने किस बात की चुकाई कीमत!
बिहार की राजनीति पर नजर रखनेवाले परेशान हैं। लोगों को समझ में नहीं आ रहा कि दो साल पहले नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल में आरसीपी सिंह का मंत्री बनना तय हो गया था। लेकिन मंत्रिमंडल में सिर्फ एक ही स्थान लेने को जदयू तैयार नहीं हुआ। पार्टी ने मना कर दिया। दिल्ली में पार्टी का तबसे से कोई प्रतिनिधित्व नहीं था।
जदयू की तरफ से तब कहा गया था कि सीटों के अनुपात में मंत्रिमंडल में जगह मिलनी चाहिए। 2019 में लोजपा के छह सांसद जीते थे और पार्टी प्रमुख रामविलास पासवान केंद्र में मंत्री बने थे। उस आधार पर जदयू की मांग सबको उचित लगी थी। पार्टी का दावा कम से कम तीन मंत्री पद का था। जदयू के 16 सांसद हैं।
इस बार भी संख्या बल के आधार पर जदयू की दावेदारी तीन की बनती है। राजनीतिक हलकों में चार मंत्री बनाए जाने की चर्चा थी। फिर अचानक क्या हुआ कि जदयू को एक ही मंत्री पद मिला और पार्टी ने इस बार मना नहीं किया। जदयू क्यों मान गया?
इस बीच एक नया घटनाक्रम हुआ। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा ने नीतीश के विरोध में खुलकर प्रत्याशी उतारे। जदयू को 30 से 35 सीटों का नुकसान हुआ। अब लोजपा दो-फाड़ हो गई है। विश्लेषक मानते हैं कि लोजपा को तोड़ने और पारस को लोकसभा में नेता बनवाने तथा मंत्रिमंडल में जगह दिलवाने में जदयू की भूमिका खास रही। तो क्या जदयू इसलिए एक स्थान पाकर भी इस बार राजी हो गया कि उसने लोजपा को जगह दिलवाई? क्या लोजपा को तोड़ने और पारस को मंत्री बनाने की कीमत जदयू ने चुकाई? यह भी कहा जा रहा है कि पारस को भी जदयू कोटे का ही हिस्सा मिला।
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जदयू के वरिष्ठ नेता ललन सिंह, रामनाथ ठाकुर, चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी सहित कई नाम केंद्र में मंत्री बनने की रेस में थे। क्या अब इन्हें 2024 तक इंतजार करना होगा?
चिराग जिस मार्ग पर निकले हैं वह राजद तक ही पहुंचेगा