उत्तर प्रदेश में अपनी हार का ठीकरा मुसलमानों पर फोड़ चुकीं बसपा प्रमुख मायावती ने हरियाणा में अपने बुरे प्रदर्शन के लिए जाटों को दोषी ठहराया है। हालांकि सच्चाई यह है कि हरियाणा में बसपा का वोट प्रतिशत 2019 की तुलना में 2.32 प्रतिशत घट कर सिर्फ 1.82 प्रतिशत रह गया। याद रहे हरियाणा में दलित आबादी 21 प्रतिशत है। इसी प्रदेश में कभी कांशीराम ने दलित राजनीति का प्रयोग किया था और एक हद तक सफल रहे थे। अब मायावती जाटों पर जातिवादी मानसिकता का इल्जाम लगा रही हैं, जो सरासर झूठ है। सच्चाई यह है कि खुद दलितों ने ही मायावती का साथ छोड़ दिया है। उनके अधिकतर प्रत्याशी डेढ़-दो हजार वोटों में सिमट गए।

मायावती को खुद दलितों ने छोड़ दिया, इसी सच्चाई से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए मायावती ने अपने बुरे प्रदर्शन का ठीकरा जाटों के मत्थे मढ़ दिया है।

मायावती की बसपा को इस बार 1.82 प्रतिशत वोट मिले, जबकि 2019 में 4.14 प्रतिशत वोट मिला था। तव बसपा अकेले चुनाव मैदान में थी। उसके 87 प्रत्याशी मैदान में थे। इस बार मायावती ने इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) के गठबंधन किया था। इसका अर्थ है बसपा को मिले वोट में इनेलो का भी वोट है। उस वोट को हटा दें, तो कितने दलितों ने वोट दिया, यह समझा जा सकता है।

मायावती ने अपने वोट खिसकने का आरोप जाटों पर लगाते हुए कहा- हरियाणा विधानसभा आमचुनाव बीएसपी व इनेलो ने गठबंधन करके लड़ा किन्तु आज आए परिणाम से स्पष्ट है कि जाट समाज के जातिवादी लोगों ने बीएसपी को वोट नहीं दिया जिससे बीएसपी के उम्मीदवार कुछ सीटों पर थोड़े वोटों के अन्तर से हार गए, हालांकि बीएसपी का पूरा वोट ट्रांस्फर हुआ। जबकि यूपी के जाट समाज के लोगों ने अपनी जातिवादी मानसिकता को काफी हद तक बदला है और वे बीएसपी से एमएलए तथा सरकार में मंत्री भी बने हैं। हरियाणा प्रदेश के जाट समाज के लोगों को भी उनके पदचिन्हों पर चलकर अपनी जातिवादी मानसिकता को जरूर बदलना चाहिए।

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इससे पहले मायावती ने उप्र चुनाव में अपनी हार के लिए मुस्लिम मतदाताओं को दोषी करार दिया था। कहा था कि उन्होंने मुसलमानों को कितने टिकट दिए, लेकिन मुसलमानों ने वोट नहीं दिया।

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By Editor


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