मेदनी कृष्ण उर्फ़ टीपू यादव
लोकसभा चुनाव के बाद संख्यागत दृष्टि से NDA बहुमत प्राप्त करने में कामयाब हुआ। सरकार का गठन हुआ। मंत्रिमंडल का विस्तार पोर्टफोलियो के साथ हो गया। गठबंधन के महत्वपूर्ण अंगों में एक JDU को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया, लेकिन बिहार को क्या मिला? बाबाजी का ठुल्लू?
चुनाव से लेकर सरकार गठन तक अगर कोई विशेषता देखने को मिली तो बस एक बात गुजरात के हाथों बिहार का चीरहरण। मोदी-शाह के क़दमों में नीतीश कुमार का समर्पण?
प्रधानमंत्री मोदी और नीतीश कुमार की उम्र में खास फासला नहीं है। पैर छूकर उम्र में समकक्ष मुख्यमंत्री ने कौन सा आदर्श प्रस्तुत किया, वह समझ से बाहर है।
इस कदर समर्पण के लिए नीतीश कुमार क्यों मजबूर हैं या फिर वे किस बात से डरे हैं कि सत्ता की चाबी हाथ में रहने के बाबजूद बिना शर्त ढेर हो गए। इतना ही नहीं पैर पकड़ कर कह रहे हैं कि जितना जल्दी हो शपथ लीजिए, आप जो भी करेंगे हम आपके साथ हैं। लगता है इसी समर्पण का परिणाम है मंत्रिमंडल झुनझुना।
पूरे प्रकरण से मेरे मन में दो बातें उत्पन्न होती हैं। पहली बात कि वे अस्वस्थ हैं। वक्त-बे-वक्त वे भूल जाते हैं कि उनको क्या करना है और क्या बोलना है। विधानसभा और विधान परिषद में उनके भाषण में यह दिखा था।
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दूसरी बात कि क्या प्रधानमंत्री मोदी ने नीतीश कुमार की कोई दुखती रग पकड़ ली है और जिसे वे समय-समय पर दबाते रहते हैं। कारण चाहे जो हो, लेकिन बिहार को निराशा हाथ लगी है। पिछली बार एनडीए के 39 सांसद जीते, लेकिन बिहार खाली हाथ ही रहा, इस बार तो उसके सांसद कम ही हो गए हैं। बिहार को विशेष राज्य का दर्जा, विशेष पैकेज का क्या होगा?
( लेखक राजद के बिहार प्रदेश सचिव हैं)