कर्नाटक में सारे कर्म-कुकर्म के बाद सरकार ना बना पाने के कारण भाजपा गज भी हार गयी और थान भी गंवा बैठी. लेकिन उसके लिए उससे भी पीड़ादायक कांग्रेस-जेडीएस का सरकार बनना और विपक्ष की एकजुटता है.
इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम
यह एकजुटता भाजपा के माथे पर चिंता की लकीरें खीचने वाली हैं. अगर कर्नाटक में भाजपा ने जो किया, वह ना किया होता तो शायद विपक्ष की एकजुटता के लिए ऐसी जमीन तैयार नहीं हुई होती.
इस एक जुटता में कई बाते महत्वपूर्ण हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बसपा का वह औपचारिक बयान है जिसमें उसने कहा कि आज का दिन भारत की राजनीतिक इतिहास में याद रखा जाएगा आज देश की दो बड़ी हस्तियां बसपा की अध्यक्षा माननीय बहन कुँ मायावती जी और सपा के अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव जी 25 वर्षों में पहली बार एक मंच पर आए हुए हैं यह भारत में राजनीतिक परिवर्तन का एक नया मुकाम है.
याद रखना होगा कि यूपी की 85 लोकसभा सीटों में से भापा और उसके सहयोगियों ने 80 सीटें हसोत ली थीं. अगर अखिलेश, मायावती व राहुल साथ बने रहे, जिसके आसार अब बहु हैं तो यह भाजपा के लिए भयावह हो सकता है.
इस अवसर पर तेलुगू देशम के चंद्रा बाबू नाइडू का मंच पर मौजूद रहना भी भाजपा क लिए चिंता की बात है. नाइडू कुछ दिन पहले तक भाजपा गठबंधन के साथ थे. अब अपने डेढ़ दर्जन के करीब सांसदों के साथ एनडीए छोड़ चुके हैं.
उधर महाराष्ट्र से एनसीपी का कांग्रेस गठबंधन के करीब आना भी भाजपा के लिए नयी चुनौती खड़ी करने वाला है. वहां पहले ही उसकी सबसे पुरानी सहयोगी शिवसेना भाजपा से अलग राह अपना चुकी है. हालांकि शिवसेना के लिए इस नये संभावित गठबंधन में जगह होगी या नहीं, यह फिलवक्त कह पाना मुश्किल है.
इस बदलते हालात में भाजपा के लिए सबकुछ बुरा ही है, ऐसा नहीं कहा जा सकता क्योंकि आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस और तेलुगू देशम पार्टी के एक साथ रहने की कम संभावना भाजपा के लिए सुकून देने वाला है.
लेकिन कुल मिला कर उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में जो हालात बनते जा रहे हैं वह भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात है. इन चार प्रदेशों में लगभग लोकसभा की करीब 200 सीटें हैं जहां भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी करने वाली हैं. उधर बिहार में आने वाले दिनों में रालोसपा और लोजपा जैसी पार्टियां भी भाजपा का सरदर्द बढ़ा सकती हैं. यूपी, बिहार और कर्नाटक ही वे प्रदेश हैं जहां भाजपा के लिए 2019 के चुनाव में मुसीबत खड़ी हो सकती है.
जो शामिल हुए
इस अवसर पर अन्य विपक्षी नेताओं के साथ राजद की तरफ से तेजस्वी यादव भी समारोह में मौजूद थे. विपक्षी दलों की ऐसी एकत 2015 में बिहार में दिखी थी जब महागठबंधन की सरकार नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी थी. लेकिन इस समारोह में उससे भी ज्यादा विपक्षी नेता शामिल हुए हैं. इनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, मायावती, चंद्राबाबू नायडू, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, सीताराम येचुरी, शरद पवार, अजीत सिंह, अरविंद केजरीवाल सरीखे नेता शामिल हुए.