मिर्जा गालिब का जन्म 27 दिसंबर 1797 में आगरा में हुआ था। छोटी सी उम्र में गालिब के पिता की मौत हो गई .मिर्जा गालिब का विवाह 13 साल की उम्र में उमराव बेगम से हो गया था। जिसके बाद वह दिल्ली आ गए औऱ यही रहें। 15 फरवरी 1869 को गालिब ने आखिरी सांस ली. इस तरह महात्मा गांधी के जन्म के आठ महीने पहले गालिब ने दुनिया छोड़ दी. गालिब जितने बड़े शायर के रूप में जाने जाते हैं उतने ही बड़े स्वाभिमानी भी रहे हैं. गालिब पर भारत व पाकिस्तान में अनेक टीवी सीरियल्स बने. मिर्जा गालिब नामक सीरियल में नसीरुद्दीन शाह ने उनके किरदार को जीवंत किया है.
भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्वज जज व प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन मार्कंडेय काटजू ने अनेक बार उन्हें भारत रत्न से नवाजने की मांग उठाते रहे हैं.
गालिब के कुछ शेर..
गालिब को खुद भी अपने बड़े शायर होने का एहसास रहा. इस लीए वह फरमाते हैं
हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे.
कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और
इन सबके बावजूद वह मीर तकी मीर को अपने जैसा बड़ा शायर मानने से कभी नहीं हिचके. उन्होंने लिखा
रेख्ता के तुम्ही उस्ताद नहीं हो गालिब
कहते हैं के अगल जमाने में कोई मीर भी था
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले.
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन… फिर भी कम निकले
दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है
आख़िर इस दर्द की दवा क्या है...
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है…
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना