मोदी ने जिस तरह सियासी एजेंडे को बदल डाला है उसमें क्षेत्रीय दलों के लिए सुधरने या मिट जाने के सीमित विकल्प हैं
काश, क्षेत्रीय पार्टियां सुधर पातीं ! भाजपा ने नरेंद्र मोदी के मजबूत और अकल्पनीय नेतृत्व में जिस तरह देश की राजनीति के मुहावरे को, एजेंडे को बदला है, उसमें क्षेत्रीय पार्टियों के सामने बस सुधरने या मिट जाने के सीमित विकल्प हैं ।
नवल शर्मा
एक दौर था जब राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा क्षेत्रीय भावनाओं , क्षेत्रीय विकास और अस्मिता की अनदेखी ने क्षेत्रीय दलों के उभरने की भूमिका तैयार की थी और गठबंधन राजनीति के उस दौर में उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई । पर क्षेत्रीय अस्मिता के इन जातिवादी ग्राहकों ने जो व्यवहार दिखाया , आज खुद इनके पतन का कारण बन गया है । इन दलों के थिंक टैंक को सोचना चाहिए ,,आखिर भाजपा क्यों लोगों के लिए कण्ठहार बनते जा रही । कारण तो कई हैं , पर क्षेत्रीय पार्टियों को बस दो बात सीखने की आवश्यकता है । पहला , बहुसंख्यक जनभावनाओं के अनुरूप अपनी मान्यताओं का निरूपण कैसे किया जाए और दूसरा किसी भी दल की रीढ़ कार्यकर्ताओं को कैसे संभाला और समर्पित बनाया जाए ।
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रोड पर निकलिए और लोगों की प्रतिक्रिया जानिए
अब जैसे आर्टिकल 370 को लें । कोई लम्बा चौड़ा तर्क नहीं । छोटी सी बात । जाइये रोड पर और लोगों की प्रतिक्रिया देखिए । लोग कितने उल्लसित हैं । जिस गांव में आप रहते हैं उस गांव के दालान पर लोगों की प्रतिक्रिया सुनिए और समझिए । अब इसके बाद भी अगर आप इस भ्रम में फंसे हैं कि जम्मू कश्मीर की विधानसभा से अनुमोदन क्यों नहीं लिया गया , उमर अब्दुल्ला और महबूबा जैसों को नजरबंद क्यों किया गया , प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं हुआ —- तो आप पता नहीं किस मुगालते में फंसे हैं । लोग दीवाली मना रहे और आप जबरन मुहर्रम मनाने में लगे हैं । अब दौर बदल चुका है । आखिर क्या कारण है की बिहार को विशेष दर्ज़ा का प्रश्न बिहारियों को आंदोलित नहीं कर पाता ? सीधी सी बात है , अब केवल क्षेत्रीय हित की बात से काम नहीं चलनेवाला बल्कि अब भारत की एकता और अखंडता से जुड़े सवालों को भी इसमें मिक्स करना होगा । अब अपना नजरिया राष्ट्रीय बनाना होगा , राष्ट्रहित से जुड़े प्रत्येक प्रश्न पर वोट बैंक की चिंता किये बिना अगुवाई करना होगा ।
क्षेत्रीय दलों की हकीकत
दूसरी बात । मुझे लगता है और काफी करीब से मैंने क्षेत्रीय दलों की कार्यप्रणाली को देखा और समझा भी है । इन दलों का व्यक्ति केन्द्रित होना एक बड़ी समस्या है । वन मैन शो । फ़र्ज़ कीजिये ममता बनर्जी न रहें तो तृणमूल का क्या होगा , नवीन पटनायक न रहें तो बीजद का क्या होगा ? कौन है पार्टी में जो उनके बाद सबको सहेज कर चल सके , जिसे लोग स्वाभाविक रूप से अपना नेता मान लें . तो इनका शिराजा बिखरना तय मानिये और हो भी रहा । लेकिन दूसरी समस्या ज्यादा गंभीर है । कोई भी क्षेत्रीय दल अपने अंदर लोकतंत्र की बहाली के लिए तैयार नहीं है । प्रत्येक क्षेत्रीय दल में अच्छे ,अनुशासित और पढ़े लिखे कार्यकर्ताओं की अच्छी खासी तादाद है जो न दलाली करते हैं न ठीका पट्टा न कोई अवैध काम । पर वो हाशिये पर हैं । कार्यकर्ताओं की तो छोड़िए ,,, इन दलों के अधिकांश मंत्रियों को लीजिये । अव्वल दर्जे के मूर्ख , अनपढ़ , जाहिल और ढ़ोंढा -मंगरु टाइप । आप ऐसे ही जाहिलों के जरिये राज्य का विकास कीजियेगा और भाजपा का सामना कीजियेगा ।
मुझे लगता है जिस दिन क्षेत्रीय पार्टियां पूरी ईमानदारी से अपने दल के अच्छे और ईमानदार लोगों को प्रश्रय देना शुरू कर देंगीं उसी दिन से उनका दिन बहुरना शुरू हो जाएगा । अगर भाजपा से लड़ना है तो भाजपा जैसा बनना होगा , उनकी सांगठनिक कुशलता ,विषय की विशेषज्ञता , अच्छे कार्यकर्ताओं का सम्मान , राष्ट्रीय नजरिया – कई ऐसी बातें हैं जिनसे सीख लेने का वक्त आ गया है ; वरना राजनीति जिस दिशा में बढ़ रही , मिटने के लिए तैयार रहिये ।
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/02/naval.sharma.jpg” ]नवल शर्मा राजनीतिक चिंतक हैं. यहां प्रस्तुत विचार उनका निजी है.[/author]