मोदी को 3 लाख, राहुल को 14 लाख लोगों ने देखा
तीन कृषि कानून वापस लेने की घोषणा के बाद अबतक पीएम के वीडियो को तीन लाख लोगों ने देखा, जबकि राहुल गांधी के वीडियो को लगभग 14 लाख ने। 5 लेखकों ने क्या कहा?
कुमार अनिल
700 से ज्यादा किसानों के बलिदान, लखीमपुर में किसानों को रौंद कर मारने, हजारों किसानों पर झूठे मुकदमे, न जाने कितने किसानों के सिर फोड़ने-घायल करने, खालिस्तानी-देशद्रोही बताने, किसान मानने से ही इनकार करने के बाद आखिरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बात समझ में आई और आज उन्होंने तीन कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी।
घोषणा के बाद खबर लिखे जाने तक ट्विटर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वीडियो को सिर्फ सवा तीन लाख जबकि राहुल गांधी के वीडियो को 13 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं। नरेंद्र मोदी के ट्वीट को 21 हजार, जबकि राहुल गांधी के ट्वीट को 53 हजार लोगों ने लाइक किया है। पीएम का ट्वीट 7 हजार बार रिट्वीट हुआ है, जबकि राहुल का ट्वीट 17 हजार बार रिट्वीट हो चुका है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना वीडियो शेयर किया, जिसमें 18 मिनट का उनका राष्ट्र के नाम संबोधन है। वहीं, राहुल गांधी ने 11 महीना पहले का अपना वीडियो शेयर किया है, जिसमें वे कह रहे हैं-मैं किसानों को जानता हूं। वे पीछे हटनेवाले नहीं हैं। मेरे शब्द नोट कर लीजिए- प्रधानमंत्री को तीनों कानून वापस लेना ही होगा।
आज सोशल मीडिया पर राहुल गांधी का वह वीडियो वायरल है। हजारों लोग शेयर कर रहे हैं और सभी को लोग देख रहे हैं। इस प्रकार राहुल के वीडियो को देखनेवाले की गिनती कठिन है। लोग कह रहे हैं कि राहुल की बात सही साबित हुई। राहुल के कई पुराने वीडियो आज वायरल हो रहे हैं, जिसमें वे किसानों के पक्ष में बोल रहे हैं।
देश के अन्नदाता ने सत्याग्रह से अहंकार का सर झुका दिया।
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) November 19, 2021
अन्याय के खिलाफ़ ये जीत मुबारक हो!
जय हिंद, जय हिंद का किसान!#FarmersProtest https://t.co/enrWm6f3Sq
तीनों कृषि कानून वापस लिये जाने के बाद देश की प्रमुख 5 हस्तियों ने क्या कहा, यह जानना न सिर्फ रोचक है, बल्कि पूरे प्रकरण को समझने के लिए जरूरी है।
वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग ने कहा- पहले नोटबंदी, फिर लॉक डाउन, अब कृषि क़ानूनों की वापसी। हुकूमत राष्ट्र के नाम संदेशों के ज़रिए चल रही है। संसद की बैठकों की प्रतीक्षा करना बंद कर देना चाहिए। अब किसी भी समय कुछ भी हो सकता है। पता किया जाना चाहिए कि कृषि क़ानूनों को वापस लेने के लिए मंत्रिमंडल की बैठक कितने बजे हुई थी !
जनसत्ता के पूर्व संपादक, लेखक और वाइसचांसलर ओम थानवी ने कहा-अंतत: सत्य की ही जीत होती है। गांधीजी ने कहा था — इतिहास गवाह है कि जब-जब आततायी और हत्यारे आए, कभी लगा कि वे हारेंगे नहीं। मगर अन्त में वे हारे। हमेशा उनकी ही हार हुई — “याद रहे, हमेशा”!
पत्रकार रवीश कुमार ने कहा-एक साल पहले की तस्वीर याद करें। गोदी मीडिया किसान आंदोलन को आतंकवादी कहने लगा। उस अफ़सर को याद करें जिसने किसानों का सर फोड़ देने की बात कही और सरकार उसके साथ खड़ी रही। किसानों ने विज्ञान भवन में ज़मीन पर बैठकर अपना खाना खाया। उन कीलों को याद करें जो राह में बिछाई गई। किसानों को बधाई। उन्हें भी, जिन्होंने किसानों को आतंकवादी, आंदोलनजीवी कहा। किसानों ने देश को जनता होना सिखाया है, जिसे रौंद दिया गया था। आवाज़ दी है।
गोदी मीडिया आज भी किसानों की बात किसानों के लिए नहीं ‘उनके’ लिए करेगा।किसानों ने समझा दिया कि किसानों को कैसे समझा जाता है।
लेखक अशोक कुमार पांडेय ने लिखा-किसान नेताओं के संघर्ष को नमन। यह जज़्बा वर्षों बाद दिखा है। एक अन्यायी सरकार के सामने हर अत्याचार को सह कर खड़े रहने का जज़्बा। राहुल गांधी, चौधरी जयंत , तेजस्वी यादव जैसे नेताओं ने जिस तरह शुरू से बिना झिझक इस आंदोलन को समर्थन दिया वह शानदार था। यह जनता की जीत है। अब अगर ज़रा भी शर्म है तो MSP पर फ़सल ख़रीदने का क़ानून बनाओ।
लेखक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने ट्वीट किया-कोई ख़ुशफ़हमी न पालें, यूपी में भाजपा की वापसी माने कृषि क़ानूनों की वापसी और भी घातक रूप में। साहब ने समझा दिया होगा “मितरों” को कि यूपी में वापसी तक इंतज़ार कर लें।
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