भाजपा का पूरा प्रचारतंत्र सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सामने लाता है। पूरे प्रचार के केंद्र में अकेले मोदी ही रहते हैं। सारी सत्ता उनके हाथ में है। यहां तक कि मंच पर माला में भी सिर्फ मोदी ही रहते हैं। अब वही प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार अमित शाह की जमकर तारीफ की है। इसके बाद चर्चा तेज हो गई है कि क्या प्रधानमंत्री को अपनी हार का आभास हो गया है और क्या उन्होंने अपना वारिस अमित शाह को चुन लिया है? इस पत्र से मोदी के बाद योगी नारे की हवा निकल गई है। वहीं इस पत्र से भाजपा के भीतर का संघर्ष तेज होने की आशंका है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अमित शाह को दो पन्ने का पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा कि तेरह साल की उम्र में आपने आपातकाल के खिलाफ खड़े लोगों को सहयोग देते हुए अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की। 80 के दशक से जनकल्याण के विभिन्न कार्यों में आपने मेरे साथ काम किया, तभी से ही मैंने आपका समाज सेवा और भारत के उत्थान के प्रति अटूट समर्पण करीब से देखा है।
उन्होंने पत्र में आगे लिखा है कि ”पार्टी का अध्यक्ष रहते हुए आपने ऐतिहासिक सदस्यता अभियान चलाए, जिसके परिणामस्वरूप हमने बीजेपी को विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बनाने के अपने साझा सपने को साकार किया। भारत के गृह मंत्री रहते हुए अनुच्छेद-370 समाप्त करने से लेकर सीएए एवं भारतीय न्याय संहिता जैसे महत्वपूर्ण नीतियों को पारित करवाना और नए सहकारिता मंत्रालय की जिम्मेदारी का निष्ठापूर्वक निर्वहन करना- केंद्रीय मंत्री के रूप में आपने अनेक महत्वपूर्ण निर्णयों में अहम भूमिका निभाई है। इसी के साथ प्रधानमंत्री ने इंडिया गठबंधन पर भी हमला बोला है कि वह जनता की संपत्ति मुसलमानों को बांट देना चाहती है।
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प्रधानमंत्री के इस पत्र को अब तक हुए दो चरणों के चुनाव में भाजपा के बुरी तरह पिछड़ने से जोड़ कर देखा जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी अब चार सौ पार का नारा भी नहीं दे रहे हैं। उनका भाषण छितराया हुआ दिख रहा है। कभी वह मंगलसूत्र की बात कर रहे हैं कभी कहते हैं कि आपकी संपत्ति कांग्रेस मुसलमानों को दे देगी। इस स्तर पर नीचे उतर कर भाषण देने की आलोचना भी हो रही है। दो चरणों के चुनाव में वे कोई बड़ा एजेंडा सेट करने में पूरी तरह विफल रहे हैं।