प्रचंड बहुमत प्राप्त करने के बाद नरेंद्र मोदी ने भाजपा मुख्यालय पर अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए कहा कि हमें हर हाल में पूरी नम्रता और लोकतंत्र की मर्यादा में आगे बढना है.
मोदी ने कहा कि देशवासियों 2014 में आप मुझे ज़्यादा जानते नहीं थे. लेकिन मुझे जानने के बाद आपके समर्थन में और ताक़त आई है. मैं इसके पीछे की भावना को भली-भांति समझता हूं. जैसे अमित भाई कह रहे थे कि बहुत वर्षों बाद एक चुनी हुई सरकार दूसरी बार पूर्ण बहुमत और पहले से अधिक ताक़त से जीतकर आए- इसका मतलब देश की जनता का बड़ा भरोसा है. भरोसा जैसे बढ़ता है, ज़िम्मेदारी ज़्यादा बढ़ती है.
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पचास साल बाद मिली ऐसी सफलता
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नम्रता व लोकतंत्र की मर्यादा का रखेंगे ध्यान
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समृद्ध राष्ट्र का करेंगे निर्माण
उन्होंने कहा कि देशवासियों ने मुझे जो दायित्व दिया है, इसे मेरा वादा, संकल्प या प्रतिबद्धता मानिए, आपने फिर से मुझे जो काम दिया है, आने वाले दिनों में भी मैं बदइरादे से या बदनीयत से कोई काम नहीं करूंगा. काम करते-करते ग़लती हो सकती है लेकिन बद-इरादे या बद-नीयत से कोई काम नहीं करूंगा.आपने मुझे इतना बड़ा भरोसा दिया है कि मैं मेरे लिए कुछ नहीं करूंगा.
मोदी ने कहा कि मेरे समय का पल-पल, मेरे शरीर का कण-कण सिर्फ़ और सिर्फ़ देशवासियों के लिए है. मेरे देशवासी जब भी मेरा मूल्यांकन करें, इन तीन तराजू पर मुझे कसते रहना. कोई कमी रह जाए तो मुझे कोसते रहना. मैं सार्वजनिक तौर पर जो बातें कहता हूं, उसे जीने के लिए पूरे प्रयास करूंगा.
समृद्ध राष्ट्र बनाना है
2019 से 2024 का कालखंड देश की आज़ादी के सिपाहियों का स्मरण करने का है. हम 130 करोड़ लोग संकल्प करें कि देश को सभी मुसीबतों से मुक्त करके समृद्ध राष्ट्र बनाना है और ग़रीब से ग़रीब की सामान्य आवश्यकताओं को पूरा करना है तो 2024 से पहले देश को हम नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं.और इसलिए इस चुनाव को हमें नम्रता से स्वीकारना है. सरकार तो बहुमत से बनती है, जनता ने बना भी दी. लेकिन लोकतंत्र का संस्कार और उसका स्पिरिट हमें ज़िम्मेदारी देता है कि सरकार भले ही बहुमत से बनती हो लेकिन देश सर्वमत से बनता है.
मैं सार्वजनिक रूप से कहता हूं. चुनाव में कौन क्या बोला, मेरे लिए वो बात बीत चुकी है. हमें आगे देखना है. सबको साथ लेकर चलना है. हमारे घोर विरोधियों को भी साथ लेकर चलना है. प्रचंड बहुमत के बाद भी पूरी नम्रता के साथ, लोकतंत्र की मर्यादाओं के बीच चलना है. संविधान हमारा सुप्रीम है, उसी की छाया में हमें चलना है.
जाति के नाम पर खेलने वालों पर प्रहार
भारत की जनता ने एक नया नैरेटिव सामने रख दिया है. सारे समाजशास्त्रियों को पुरानी सोच पर विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है. वो नैरेटिव ये है कि देश में अब सिर्फ़ दो जाति बचेंगी. ये जाति के नाम पर खेल खेलने वाले लोगों को बहुत बड़ा प्रहार हुआ है. ये दो जातियां हैं- ग़रीब और दूसरी जाति है- देश को ग़रीबी से मुक्त करने के लिए अपना योगदान देने वालों की. एक वो हैं जो ग़रीबी से बाहर आना चाहते हैं, दूसरे वे हैं जो देश को ग़रीबी से मुक्त कराना चाहते हैं.
सेक्युलरिज्म का चोला समाप्त
तीस साल से देश में, विशेष रूप से, वैसे ये ड्रामेबाज़ी तो लंबे समय से चल रही है- एक टैग था, जिसका नाम था सेक्युलरिज्म. जिसका चोला ओढ़ते ही सारे पाप दूर हो जाते थे. नारे लगते थे कि सारे सेक्युलर एक हो जाओ. आपने देखा होगा कि 2014 से 2019 आते आते उस पूरी जमात ने बोलना ही बंद कर दिया. इस चुनाव में एक भी राजनीतिक दल सेक्युलरिज़्म का नकाब पहनकर देश को गुमराह करने की हिम्मत नहीं कर पाया.
वो बेघर जो आज पक्के घर में रहने गए हैं, यह उनकी विजय है और जिनकी 2022 तक घर बनना तय है, उनकी विजय है. यह मध्यवर्ग के उन परिवारों की विजय है जो नियम कानूनों का पालन करते हुए टैक्स देता रहा. पांच साल में उसने अनुभव किया कि उसका टैक्स सही काम आ रहा है. उस मध्यवर्ग के मन का संतोष इस चुनाव में नज़र आ रहा है.