मोतिहारी के हृदय में बसी मोती झील Moti Jheel Motihar) और तेजस्वी का दर्द
मोतिहारी के हृदय में बसी मोती झील ( Moti Jheel Motihari) इस शहर की दुखती रग जैसी बदस्तूर बनी हुई है. राज्य के किसी शहर के बीचोबीच इतनी मनोरम झील नसीब में नहीं है.इस झील पर पिछले दिनों तेजस्वी यादव की नजर पड़ी. तो वह भी चकित रह गये. वह इस झील से इतने प्रभावित हुए कि ऐलान कर दिया कि उनकी सरकार बनी तो न सिर्फ इस संवारे-सजायेंग बल्कि एक भव्य पर्यटक स्थल बनायेंगे.
[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]Irshadul Haque, Editor naukarshahi.com[/author]
पिछले दिनों बेरोजगारी हटाओ यात्रा के दौरान उन्हें इस झील के बारे में बताया गया तो उन्होंने अपने व्यस्त समय में से कुछ पल इस झील के लिए निकाल लिया. सहयोगियों के साथ वह मोती झील पहुंच गये. इस मनोरम झील की बदकिस्मती देख कर तेजस्वी मर्माहत हो गये. उन्होंने कहा कि जल जीवन हरियाली के नाम पर कोरड़ों रुपये लुटाने वाली सरकार क्या कर रही है? पिछले पंद्रह वर्षों में इस झील की किस्मत क्यों नहीं संवारी गयी? वह इस झील से जुड़ी संभावनाओं से इतने प्रभावित हुए कि इस मुद्दे पर ट्विट किया.
उन्होंने लिखा कि “बेरोज़गारी हटाओ यात्रा के दौरान मोतीहारी के बीचों-बीच स्थित मोती झील का जायज़ा लिया। ड़बल इंजन सरकार की उदासीनता, कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और गंदगी के चलते यह ऐतिहासिक झील मृतप्रायः हो गयी है। हम इसे प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रोज़गार के अवसर पैदा करेंगे”।
आंखों को चुभन
468 एकड़ क्षेत्र में फैली इस झील के किनारों पर आप पहुंचते हैं तो आपके पास गर्व करने जैसा कुछ भी नहीं महसूस होता, बल्कि इसे देखते ही आप की आंखों को इसकी दुर्दशा चुभन दे जाती है. खासकर तब जब आप भोपाल के भोजताल, कश्मीर की डल झील को देख चुके हों तो.
कश्मीर की मनोरम वादियों में बसी डल झील की सुंदरता पर पूरे देश के लिए गर्व है तो यही गर्व मोतिहारी वासियों को मोती झील को देख कर होता, पर ऐसा कत्तई नहीं है.
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तो अब थम जायेंगे मोतिहारी की मोती झील के आंसू?
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लेकिन जब आप इस झील को देख कर भोपाल के भेजताल को देखें तो आप को लग सकता है कि, अगर इस झील को संवार दिया जाये तो किसी मायने में यह भोपाल की झील से उन्नीस नहीं होगी. और तब यहां भी हजारों पर्यटक आकर बोटिंग का लुत्फ उठा सकेंगे. पर हकीकत यह है कि गलाजत भरे पानी, शहर के बजबजाते नालों की इस झील में उतरती श्रंखाला और जलकुंभी के मकड़ जाल ने इसके सौंदर्य को कलंकित कर रखा है.
मोतिहरी की डल झील
एक जमाने में मोतिहारी की डल लझील कही जाने वाली मोती झील वीरानियों की यादें भर रह गयी हैं. यह हाल दशकों से है. लेकिन संतोष की बात है कि मोतिहारी के कुछ उत्साही युवाओं और स्थानीय राजनीतिक नेतृत्व ने इस झील को संजोने-संवारने के लिए समय-समय पर सड़क से लेकर केंद्र और राज्य सरकार के आशियानों तक उतरते रहे हैं. इन सामुहिक प्रयासों का नतीजा, एक सुनहरी उम्मीद के रूप में कभी-कभी सामने आ तो जाती है पर नौकरशाही की पेचीदगियों और टॉप लेवल के राजनीतिक नेतृत्व की असंवेदनशीलता उम्मीदों पर पानी भी फेरती रही है.
नीतीश का नालंदा
जहां तक नीतीश कुमार की बात है तो उन्होंने कभी इस झील के बारे में सोचा तक नहीं. नालंदा, जो उनका गृह जिला है, उसे संवारने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ा. नालंदा पिछले डेढ़ दशक में इतना बदल चुका है कि अगर कोई व्यक्ति 15 वर्ष पहले वहां गया हो और अब वहां पहुंच जाये तो उसे अपनी आंखों पर यकीन नहीं होगा.
मोतिहारी के लोग सवाल करते हैं कि काश कोई नेता मोतिहारी के इस डलझील के महत्व को समझ पाता. लेकिन तेजस्वी यादव ने इस झील को जिस भाउक निगाहों से देखा है. इसके महत्व को परखा है. उससे मोतिहारी के लोगों की उम्मीदें जगी हैं. तेजस्वी में ऊर्जा है. वह युवा हैं. आधुनिक सोच रखते हैं. ऐसे में उनसे उम्मीदें की भी जा सकती हैं.