प्रात:कमल अखबार के मालिक ब्रजेश ठाकुर, 42 बच्चियों के नियमित बलात्कार मामले में सलाखों में बंद हैं. इस अखबार का कमाल यह है कि इसे गिने-चुने चंद लोगों के अलावा कोई जानता तक नहीं. पर रिकार्ड में इसका सर्कुलेशन 62 हजार प्रतियां प्रतिदिन है. सच्चाई यह है कि इसकी 6200 प्रतियां भी नहीं छपतीं.
संजय वर्मा की एक्सक्लुसिव रिपोर्ट
अगर आप सुधी पाठक हैं. बिहार के अखबारों को बारीकी से जानते हैं, तो शायद आपने इस अखबार का नाम सुना होगा. पर इस अखबार का नाम सुनने वालों में भी ऐसे लोगों की संख्या काफी ज्यादा है जिन्हें इस अखबार को कहीं देखा भी नहीं होगा. एनजीओ से सफर की शुरुआत करने वाले ब्रजेश ठाकुर के पिता यानी बड़े ठाकुर ने इसे कैसे चलाया यह बीते दिनों की बात है. पर ताजा मामला यह है कि इस अखबार को बिहार सरकार से बड़े पैमाने पर विज्ञापन मिलते हैं. आईपीआरडी जो अखबारों को विज्ञापन जारी करता है, उसके विज्ञापनों की फेहरिस्त देख कर कोई भी दंग रह जाये. नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने भी इस ओर इशारा किया है.
वैसे तो बिहार में अखबारी विज्ञाप का खेल अपने आप में एक बड़ा और सिलसिलेवार घोटाला है. पर प्रात:कमल को मिलने वाले लाखों लाख के विज्ञाप भी एक बड़ा घोटाला है. जिसकी जांच की जाये तो इसकी चक्की में आला अधिकारी तक पिस सकते हैं.
आम अवाम में कहीं न दिखनेवाला मुज़्ज़फरपुर काअखबारर प्रातः कमल की62 हज़ार प्रतियां किस शहर में कहां बिकती हैं बड़े ठाकुर तो छोटे बाज़ीगर थे पर छोटे ठाकुर तो महाबाजीगर ही निकले.अखबारर और एनजीओ को आसमान की ऊंचाइयों तक ले जाने में कामयाब रहे,तो खुद को सत्ता शीर्ष की बुलंदियों तक पहुंचाया। इस कामयाबी का राज क्या है,11 करोड़ बिहारियों को भी जानने की इच्छा है.
मुज़्ज़फरपुर शहर से लंबे समय से दैनिक प्रातः कमल अखवार का प्रकाशन हो रहा तब इसके मालिक संपादक राधामोहन ठाकुर हुआ करते थे. ब्रजेश ठाकुर के पिता. कहते हैं कि इस अखबारर की शुरुआत एनजीओ की बेशुमार कमाई से की गयी थी. उनकी पहुंच दिल्ली,पटना हर जगह थी या कहें तो तूती बोलती थी हालांकि सरल सज्जन सौम्य मिलनसार व्यक्तिव के धनी थे ठाकुर जी।
उनके गुजरने के बाद पुत्र ब्रजेश ठाकुर ने पूरी विरासत संभाला और धाक सत्ता के गलियारे तक बनाई फलतः तब और अब भी पटना के अन्य अंखबारो के मुकाबले बिक्री के मामले में कभी कहीं मुकाबला नहीं है. पता नही कब कैसे अचानक अखबार ने आसमान छू लिया. या यह ऊंचाई कागजों और सरकारी दस्तावेजों तक ही सीमित है. यही कारण है कि सरकारी अफसरों व नेताओ के टबलों तक बांटा जाने वाला यह अखबार 62 हजार प्रति कैसे हुई. सरकारी मेहरबानी से लीडिंग अंखबारों जैसा करोड़ों का विज्ञापन मिलना भी एक बड़ा भ्रष्टाचार की तरफ इंगित करता है. अब जबकि ब्रजेश की गर्दन बलात्कार कांड में फंस चुकी है तो लगता है कि अखबार के विज्ञापन घोटाले की भी पोल खुलेगी ही.
बिहार सरकार के सूचना जनसंपर्क विभाग में पत्रकारों को मान्यता देनेवाली कमिटी के सदस्य बने अंखबारी धाक के आगे सरकार ने उनके एनजीओ सेवा संकल्प को मुजफ्फरपुर में बाल सुधार गृह,अल्पावास गृह चुना जहां लबे समय से उन42 मासूमो के साथ दरिंदगी का खेल खेला जा रहा था।
आरोप में ब्रजेश को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. उनके अलावा सेवा संकल्प की आठ अन्य महिलाओं को भी जेल भेजा गया. अब सवाल है कि उन मासूम बच्चियों को रौंदने वाले वो रसूखदार कौन थे इसमें मोहरा चलनेवाले मोहरा बिछाने बाले कौन थे ब्रजेश ठाकुर मोहरा भर था जिसे घिनौनी घटना का किंगपिन सूत्रधार कह सकते है, सरकार सीबीआई से जांच क्यों नहीं कराना चाहती यह उसका बिषय है पर इस घटना में संलिप्त लोगों की सच्चाई सामने आनी चाहिये और सरकार को लाना चाहिए क्योंकि इस कुकृत्य से उन 42 मासूमो की जिंदगियां तबाह हो गईं.