नफरत के बाजार में खूब चली मनीष की दुकान, खाते में मिले 43 लाख
ईमानदारी-मेहनत से काम करने वाले भाइयों, सोचिए आपके खाते में कितनी रकम है। कुछ हजार, लाख-दो-लाख बस। और नफरत के इस सौदागर के खाते में 43 लाख!
तमिलनाडु और बिहार में झगड़ा लडा़ने वाले यू-ट्यूबर मनीष कश्यप उर्फ त्रिपुरारी तिवारी के खाते को आर्थिक अपराध ईकाई ने सील कर दिया है। उसके कई बैंक खातों में कुल 43 लाख रुपए हैं। और कहां-कहां सपत्ति बनाई है, उसका पता नहीं। ईमानदार और मेहनत से काम करनेवाले पत्रकार ही नहीं, दूसरे लोग भी चकित हैं कि नफरत की दुकान में खरीदारों की कितनी भीड़ है। आम लोग मेहनत करके रिटायर होने के बाद भी इतनी रकम की कल्पना नहीं कर सकते, जितना मनीष ने कुछ ही वर्षों में झूठ, नफरत बेच कर कमा लिया।
मनीष कश्यप का झूठ पकड़ा गया है, लेकिन बेशर्म लोग कम नहीं हैं। वे अब भी उसे निर्दोष बता रहे हैं। उसने तमिलनाडु और बिहार में, उत्तर भारत और दक्षिण भारत, हिंदी और गैर हिंदी के बीच नफरत की दीवार खड़ी की। असली टुकड़े-टुकड़े गैंग यही है। मनीष के फेसबुक को खंगालनेवाले लोगों ने बताया कि उसने मुसलमानों के खिलाफ कई नफरती वीडियो बनाए। अविवेकी और अंधभक्त इन वीडियो को खूब पसंद करते हैं और इससे उसकी कमाई बढ़ती गई।
इन पंक्तियों से यह न समझिए कि ईमानदारी छोड़ कर आपको भी झूठ और नफरत की दुकान खोलने को कहा जा रहा है। ठीक है कि हिंदू-मुस्लिम नफरत की दुकान चला कर उसने लाखों कमाए, लेकिन अंत में क्या हुआ। आज की तारीख में वह भगोड़ा है। उसे न दिन में चैन होगा और न रात में नींद आती होगी। नींद की दवा खाने पर भी नींद नहीं आ रही होगी। और नोट कर लीजिए, वह जेल भी जाएगा और तब कोई साथ नहीं देगा। जिन बाबाओं, नेताओं के साथ उसके फोटो हैं, वे भी पल्ला झाड़ लेंगे। तो ये लाखों रुपए कि काम के। इसलिए, भले ही लाखों रुपए बैंक में नहीं हैं, लेकिन ईमानदारी की रोटी में जो सुख है, चैन है और रात में नींद है, उसका जवाब नहीं।
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