नेताओं के अजमेरशरीफ चादर रवाना करने पर IPS का सवाल
प्रधानमंत्री सहित कई मुख्यमंत्री अपनी तरफ से अजमेरशरीफ के लिए चादर भिजवाते हैं। इस परिपाटी पर एक चर्चित पूर्व आईपीएस अधिकारी ने गंभीर सवाल उठाया है।
कुमार अनिल
चर्चित पूर्व आईपीएस अधिकारी अब्दुर्रहमान अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने सूफी-संतों के मजारों पर नेताओं द्वारा चादर भिजवाने की परंपरा पर गंभीर सवाल उठाया है।
अभी दो दिन पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अजमेरशरीफ के लिए एक चादर विदा की। चादर उन्होंने राज्य की हज कमेटी के चेयरमैन विधायक इरफान अंसारी को सौंपी। मुख्यमंत्री ने कहा कि चादर राज्य की खुशहाली के लिए भेज रहे हैं।
आईपीएस अधिकारी अब्दुर्रहमान ने इस खबर को अटैच करते हुए सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा-मुसलमानों को समझना चाहिए कि उन्हें स्कूल, कॉलेज, स्कॉलरशिप और सत्ता में सम्मानजनक भागीदारी चाहिए। चादर भिजवाने जैसे प्रतीकात्मक (टोकेनिज्म) कार्यों से उनका कुछ भी भला होनेवाला नहीं है। इसके विपरीत ऐसे कार्यों से सांप्रदायिक तत्वों को यह कहने का मौका मिलता है कि देखिए, किस तरह मुसलमानों का पक्ष (तुष्टीकरण) लिया जा रहा है।
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आईपीएस अब्दुर्रहमान प्रसिद्ध पुस्तक डिनाएल एंड डेप्रिवेशन : मुस्लिम आफ्टर सच्चक कमीशन रिपोर्ट के लेखक हैं। मालूम हो कि सच्चर कमीशन ने पहली बार विस्तार से आंक़ड़ों के साथ बताया था कि किस प्रकार देश में एक तरफ यह धारणा निर्मित की गई कि हर सरकार मुसलमानों के हित पर ज्यादा ध्यान देती है, जबकि वास्तविकता यह है कि मुसलमान शिक्षा, स्वास्थ्य से लेकर रोजगार और सत्ता में हिस्सेदारी सभी मामलों में बेहद उपेक्षित और दयनीय स्थिति में हैं। कुछ मामलों में तो वे दलितों से भी पीछे हैं।
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यहां यह भी याद कराना जरूरी होगा कि पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अजमेरशरीफ के लिए चादर भेजी थी। इस अवसर की तस्वीर भी मीडिया में प्रसारित की गई थी।
आीपीएस अधिकारी ने ऐसे कार्यों को प्रतीकात्मक कार्य कहा है। इससे थोड़ी देर को सुकून मिल सकता है कि फलां ने चादर भेजी, पर इससे मुसलमानों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आता। बदलाव तो शिक्षा, रोजगार, बेहतर स्वास्थ्य, मुस्लिम मुहल्लों में बेहतर नागरिक सुविधाओं से आएगा।