मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर यह आम धारणा बन गई है कि वे बीमार हैं। उन्होंने आम लोगों से बात करना बंद कर दिया है, मीडिया से बात करना बंद कर दिया है, जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम भी बंद हो चुका है। वे सिर्फ उद्घाटन का फीता काट रहे हैं या निरीक्षण करने निकल रहे हैं, लेकिन इस दौरान भी उन्हें कुछ कहते नहीं सुना जा रहा है। लोग पूछ रहे हैं कि मुख्यमंत्री को हुआ क्या है। प्रशासन में पारदर्शिता की बात करने वाली सरकार मुख्यमंत्री के बारे में ही स्पष्ट नहीं कर रही है। आधिकारिक तौर पर कुछ भी स्पष्ट नहीं किए जाने के कारण बिहार में धारणा यह बनती जा रही है कि सरकार का संचालन मुख्यमंत्री नहीं कर रहे हैं, बल्कि कुछ अधिकारी ही सारा निर्णय ले रहे हैं। इसीलिए अब वक्त आ गया है कि सरकार मुख्यमंत्री का हेल्थ बुलेटिन जारी करे। बताए कि उन्हें क्या हुआ है।
मुख्यमंत्री पहले उद्घाटन के बाद भाषण दिया करते थे। अब वह भी पूरी तरह बंद हो गया है। महीना भर पहले वे एक-दो बार उद्घाटन के बाद बोले, लेकिन उनका अजीब व्यवहार चर्चा का विषय बन गया। पटना में एक कार्यक्रम में वे अधिकारियों का पैर पकड़ने के लिए आगे बढ़ गए, जो कोई मुख्यमंत्री स्वस्थ रहते नहीं कर सकता। उनकी जबान भी लड़खड़ा रही है। उन्हें लिखित भाषण दिया जा रहा है, जबकि पहले ऐसा नहीं था। आखिर क्या कारण है कि मुख्यमंत्री को लिखित भाषण दिया जा रहा है, कौन है जो मुख्यमंत्री का भाषण लिख रहा है। साफ है कि मुख्यमंत्री वही बोल रहे हैं, जो उन्हें बोलने के लिए कोई लिख कर दे रहा है।
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सवाल यह भी है कि अगर मुख्यमंत्री स्वस्थ नहीं हैं, तो उनका पद पर बने रहना क्या संवैधानिक दृष्टि से उचित है? मुख्यमंत्री के अस्वस्थ रहने से क्या बिहार का विकास प्रभावित नहीं हो रहा है। नवादा में 50 से अधिक घर जला दिए गए, लेकिन मुख्यमंत्री ने एक शब्द नहीं कहा। वक्फ एक्ट में संशोधन, एससीएसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विवाद हुआ, लेकिन मुख्यमंत्री चुप रहे, जबकि पार्टी के दूसरे नेता इतने गंभीर विषयों पर स्टैंड बता रहे हैं। स्पष्ट है कि सरकार को अब मुख्यमंत्री की हेल्थ बुलेटिन जारी करना चाहिए।
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