नीतीश ने अगर मोदी को झटका दिया, तो हो सकते हैं PM कैंडिडेट
विपक्ष की सरकारों को तोड़ देने, विरोधी दलों को तहस-नहस कर देने के दौर में अगर नीतीश कुमार ने मोदी-शाह को झटका दिया, तो हो सकते हैं पीएम प्रत्याशी।
कुमार अनिल
हम इतिहास के अजीब दौर से गुजर रहे हैं, जब जनता के वोट से चुनी गई सरकारों को तोड़ दिया जा रहा है। ईडी के ताबड़तोड़ छापे पड़ रहे हैं। विपक्षी दलों को ध्वस्त किया जा रहा है। ऐसे दौर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की इच्छा के विरुद्ध जाना ही बड़ी बात है। उन्हें चुनौती देना तो और भी खास बना देता है। बिहार में जो चर्चा है, वह सही निकली और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ लिया, तो उनका कद अचानक ऊंचा हो सकता है। इसीलिए अगर वे यूपीए और विपक्षी खेमे का हिस्सा बनते हों, तो 2024 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं।
लगता है बिहार में भाजपा के हाथ से सत्ता के तोते उड़ने ही वाले हैं। भले ही यह आभास कल जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के प्रेस वार्ता के बाद हुआ हो, लेकिन इसकी पटकथा लिखने की शुरुआत जदयू ने नहीं, खुद भाजपा ने शुरू की थी। 2020 विधानसभा चुनाव में जिस तरह लोजपा के चिराग पासवान ने चुन-चुन कर नीतीश कुमार के उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार दिया और जदयू को तीसरे नंबर की पार्टी बननी पड़ी, उस खेल के पीछे कौन था, यह सबको पता है। नीतीश कुमार समझ चुके थे कि भाजपा उन्हें धीरे-धीरे निगल जाना चाहती है, पर उन्होंने फिर साबित किया कि वे उद्धव ठाकरे नहीं हैं। हालांकि, इसका बड़ा श्रेय बिहार की जनता को जाता है, जिसने भाजपा की हिंदुत्व की राजनीति को एक हद से ज्यादा स्वीकार नहीं किया।
ललन सिंह ने कल प्रेस वार्ता में 30 प्रतिशत आरसीपी सिंह पर बात रखी, तो 70 प्रतिशत उनकी बातें भाजपा को लक्षित करके थीं। उन्होंने खुल कर कहा कि पिछले चुनाव में चिराग मॉडल काम कर गया था। उनकी पार्टी को सिर्फ 43 सीटें मिलीं, लेकिन अब पूरी पार्टी सजग है। इसीलिए चिराग-2 को हमने समय पर पहचान लिया। जहाज में छेद करनेवालों को पहचान लिया और जहाज को दुरुस्त भी कर दिया। उन्होंने इशारों में कहा कि सभी जानते है कि चिराग मॉडल के पीछे कौन था।
कांग्रेस को भी धन्यवाद दीजिए, जिसने तमाम हमलों के बाद भी संघर्ष जारी रखा और अब ईडी का छापा भाजपा को ही कटघरे में डाल रहा है। ईडी छापे का अर्थ बदल गया है। महंगाई-बेरोजगारी से आम जन परेशान हैं और लोकतांत्रिक संस्थाओं का हाल किसी से छिपा नहीं है।
बिहार में अगर नीतीश कुमार तेजस्वी यादव के साथ जाते हैं, तो दोनों का वोट प्रतिशत इतना अधिक होगा कि भाजपा मुकाबले से बाहर हो जाएगी। माना जा रहा है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में दो अंकों तक भी नहीं पहुंच पाएगी। तब राजद-जदयू को अच्छी सीटें मिल सकती हैं।
इस दौर में मोदी-शाह की भाजपा से दो-दो हाथ करते ही नीतीश का कद बड़ा हो जाएगा और क्षेत्रीय दलों की वे पसंद बन सकते हैं। कांग्रेस भी नर्म ही रहेगी। ऐसे में कई राजनीतिक दल नीतीश कुमार में प्रधानमंत्री के गुण देखें, तो आश्चर्य नहीं।
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