इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम

नीतीश कुमार के ‘पेट में दांत’ के किस्से तो आप सुनते रहे हैं. पर उनके दांत से घायल नेताओं के दर्द की कहानी आज हम से सुनिये.

पेट में दांत, मतलब अपने विरोधियों को ऐसा सबक सिखाना कि उसकी पीड़ा सार्वजनिक रूप से किसी को बताया भी नहीं सकता केवल महसूस किया जा सकता है.

यह तो अब आम है कि नीतीश कुमार और मोदी-शाह के रिश्ते इन दिनों समान्य नहीं हैं. मोदी-शाह, 2025 के बाद नीतीश को किनारे लगायेंगे, लगभग तय है. महाराष्ट्र वालें शिंदे का हस्र, नीतीश का होगा, सब यही मानते हैं. खुद नीतीश भी.

इस विवाद को सलटाने जब नीतीश दिल्ली गये तो मोदी-शाह ने मिलने से कन्नी काट ली. तब से ही नीतीश उनके पीछे पड़े हैं.

इसी क्रम में उपराष्ट्रपति जब कर्पूरी जयंती पर समस्तीपुर आये तो, नीतीश ने उन्हें कोई भाव न दिया. न मिले, न उनके साथ मंच साझा किया. जगदीप  धनखड़ प्रोटोकॉल में प्रधान मंत्री से भी ऊपर हैं. राज्य सभा के उपसभापति हैं. उन्हें सदन में मोदी अभिभावक बताते हैं. उन धनखड़ साहब को दरकिनार करके नीतीश ने न सिर्फ उपराष्ट्रपति को चोट पहुंचाई बल्कि नोदी के गार्जियन को ही औकात बता दी.

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कुछ ऐसा ही हाल लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला का भी नीतीश ने किया. 20 जनवरी को अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों का सम्मेलन पटना में था. बिड़ला दो दिनों तक पटना में मुकीम रहे. उस सम्मेलन में शिरकत के आमंत्रण पत्र पर नीतीश का नाम भी था. उन्हें संबोधन भी करना था. नीतीश ने बिड़ला की तरफ ताका तक नहीं. लोकसभा के स्पीकर को जिस तरह नीतीश ने नजरअंदाज किया, एक ऐसे मेहमान को जो सदन के सबसे पावरफुल व्यक्ति हैं. इस तरह से नीतीश ने मोदी-शाह से बदला ही लिया है.

अब सवाल यह है कि नीतीश का यह खेल कहां तक पहुंचेगा. क्या शतरंज की बिसात पर चले जा रहे मुहरे कहीं बिहार की सियासी बिसात को ही पलट देगी. कहना मुश्किल है. बस देखते जाइए. आगे क्या होता है.

By Editor


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