राष्ट्रगान का अपमान मामले के बाद पटना में सियासत गरमा गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कभी भी कुर्सी छोड़ सकते हैं, वहीं उनके बेटे निशांत कुमार की पॉलिटिक्स में एंट्री फंस गई है। पार्टी के शीर्ष नेता नहीं चाहते कि निशांत कुमार राजनीति में आएं। इसके पीछे भाजपा का दबाव माना जा रहा है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जिस प्रकार राष्ट्रगान के समय असामान्य व्यवहार किया, उसके बाद कुछ नई बातें हो रही हैं। नौकरशाही डॉट कॉम नेजदयू नेताओं से बात करके पार्टी में चल रही गतिविधियों की जानकारी ली। नीतीश कुमार के व्यवहार को लेकर पार्टी का एक तबका मान रहा है कि जनता में विरोध नहीं है, बल्कि सहानुभूति है। नीतीश कुमार के खिलाफ जो अभियान सोशल मीडिया में दिख रहा है, उसके पीछे भाजपा है।
इधर पहली बार गोदी मीडिया नीतीश कुमार के खिलाफ हो गया है। कई गोदी एंकर जो भाजपा का एजेंडा चलाने के लिए जाने जाते हैं, वे नीतीश कुमार के खिलाफ लगातार बोल रहे हैं। इसे भी माना जा रहा है कि भाजपा के इशारे पर ही ऐसा किया जा रहा है।
अब तक जदयू के किसी बड़े नेता ने नीतीश कुमार का बचाव नहीं किया है। बल्कि निशांत कुमार के राजनीति में आने के सावल पर कह रहे हैं कि इसका फैसला नीतीश कुमार लेंगे। साफ है वे इस मुद्दे को भी नीतीश के पाले में ठेल रहे हैं। वे चाहते तो कह सकते थे कि उनकी इच्छा है कि निशांत राजनीति में आएं। इस बीच अंदरूनी खबर यह है कि खुद निशांत भी राजनीति में आने को उत्सुक नहीं हैं।
कुल मिला कर स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कभी भी कुर्सी छोड़ सकते हैं। इसका निर्णय भाजपा को करना है। भाजपा केवल यह तय नहीं कर पा रही है कि चुनाव से पहले नीतीश को हटा कर अपना मुख्यमंत्री बनाने से फायदा है या नीतीश की फजीहत होने दी जाए और चुनाव के बाद अपना मुख्यमंत्री दिया जाए।