इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम
जब मनुष्य की आकांक्षा, हवस बन जाती है तो फिर उसे कदम कदम पर जलील, रुस्वा व अपमानित होना पड़ता है. अमित शाह की सत्ता की हवस की मिसालें गूगल कर जानने की जरूरत नहीं. महाराष्ट्र से राजस्थान तक सत्ता प्राप्ति के हर पाप किये गये. सरकारी संस्थानों -ईडी, सीबीआई, एनआईएक को जिस तरह अपने जरखरीद गुलाम की तरह भाजपा ने, शाह के इशारे पर इस्तेमाल किया उसकी कहानियां भी पुरानी नहीं हैं.
लेकिन उन बातों से अब आगे बढ़िये. क्योंकि गंगा में काफी पानी बह चुका है. नीतीश के नेतृत्व पर एजेंडा आज तक पर अमित शाह के नीतीश संबंधी बयान से उठी सुनामी के कई झोंके आये और गुजरते चले गये. महाराष्ट्र में शिंदे मॉडल और उससे पहले बिहार में 2020 के चिराग मॉडल के सफल प्रयोग के बाद नीतीश को मिटाने के हर हरबे इस्तेमाल कर लिये गये. लेकिन अमित शाह और उनके सिपहसालार हर कदम पर जलील, रुस्वा और अपमानित हो रहे हैं.
अब देखिए. पहले बिहार भाजपा के अध्यक्ष ने भाजपा के मुख्यमंत्री की चर्चा की और यूं कहें कि अगले ही दिन थूक कर चाटने की स्थिति बन गयी. अब यही हाल उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा का हुआ. अटल बिहारी वाजपेयी की जयनती पर भाजपा सीएम का राग अलगापा उसके चंद घंटे बाद नीतीश के नाम का माला जपने लगे. नीतीश के नाम का माला भी वैसे जैसे नीतीश ही उनके भाग्य विधाता हों.
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लेकिन इससे बड़े अपमान का घूंट तो दिल्ली में अमित शाह को पीना पड़ा. साह ने एनडीए की बैठक बुलाई. इसमें नीतीश नहीं गये. नतीजा यह हुआ कि इस बैठक में चाय-नाश्ता के अलावा कुछ भी नहीं हुआ. इस बात की तस्दीक उपेंद्र कुशवहा के उस वक्तव्य से हुआ जिसमें उन्होंने स्वीकार किया कि इस बैठक में गेटटुगेदर के अलाव कुछ भी नहीं हुआ.
अमित शाह भाजपाई सलतनत के असल शाह हैं. लेकिन नीतीश ने उनकी शाहीगिरी को खाक में मिला के रख दिया है.