कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नोटबंदी के तीन साल पूरे होने पर इस फैसले को मोदी सरकार का बिना सोचे-समझे लिया गया फैसला करार दिया और सवाल किया कि उसे बताना चाहिए इस निर्णय से देश को क्या हासिल हुआ है।
श्रीमती गांधी ने जारी एक बयान में कहा कि नोटबंदी के लाभ को लेकर जो दावे किए गए थे, उनको खुद भारतीय रिजर्व बैंक ने बाद में गलत करार दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी भी शायद इसे बेतुका फैसला मान चुके थे, इसलिए 2017 के बाद उन्होंने इस बारे में टिप्पणी करना बंद कर दिया था।
उन्होंने कहा कि शायद श्री मोदी, उनके सहयोगियों और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने भी बाद में समझ लिया था कि यह फैसला गलत था, इसीलिए उन्होंने इस बारे में कुछ भी बोलना बंद कर दिया था। उन्हें लग रहा था कि इस बारे में चुप्पी साधने से देश की जनता मोदी सरकार के इस बेतुके फैसले को भूल जाएगी लेकिन उन्हें समझ लेना चाहिए कि कांग्रेस देशहित में काम करती है। वह ऐसा नहीं होने देगी और सुनिश्चित करेगी कि देश की जनता और इतिहास कभी इसे भूल नहीं पाए।
श्रीमती गांधी ने कहा कि आठ नवंबर 2016 को जब श्री मोदी ने 500 तथा 1000 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा की थी तो दावा किया था कि इससे काला धन खत्म हो जाएगा, नकली नोट का कारोबार बंद होगा तथा आतंकवाद पर लगाम लग सकेगी। सरकार ने उच्चतम न्यायालय में भी दावा किया था कि इससे तीन लाख करोड़ रुपए का काला धन बाजार में नहीं आ पाएगा।
कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि खुद रिजर्व बैंक ने कहा है कि नोटबंदी के बाद 500 तथा 1000 रुपए के जितने नोट प्रचलन में थे, वे करीब-करीब सभी वापस आ गये थे। बड़ी संख्या में नकली नोटों के कारोबार पर रोक लगाने का दावा किया गया था लेकिन यह बहुत ज्यादा नहीं था।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी से आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगने का दावा किया गया था लेकिन इसका असर नहीं हुआ और नोटबंदी के बाद आतंकवादी घटनाएं बढ़ी हैं। यह दावा खुद सरकार ने अपने एक आंकड़े में किया है। बाजार में नोटबंदी के समय जितने नोट थे, नोटबंदी के बाद 22 प्रतिशत अधिक नोट प्रचलन में आए।