राष्ट्रीय नागरिक पंजी यानी NRC पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इस मुद्दे पर जहां पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह से असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी मुद्दे पर मुलाकात के बाद कहा कि असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) की कवायद राजनैतिक उद्देश्यों से की गयी है ताकि लोगों को बांटा जा सके. उन्होंने आगाह किया कि इससे देश में रक्तपात और गृह युद्ध छिड़ जायेगा.
नौकरशाही डेस्क
इससे पहले भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी के मुद्दे पर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस समेत विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि एनआरसी का संबंध देश की सुरक्षा और देशवासियों के मानवाधिकारों की रक्षा से जुड़ा है. कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दलों को इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए.
वहीं, ममता बनर्जी ने कहा कि मैंने गृह मंत्री से एनआरसी विधेयक में संशोधन करने या नया बिल लाने का आग्रह किया है. गृह मंत्री ने मुझे आश्वासन दिया है कि सरकार लोगों को परेशान नहीं करेगी. मैंने उनसे बंगाल में एनआरसी लागू होने की रिपोर्ट के बारे में भी बात की. मैंने उनसे कहा कि यदि ऐसी कोई चीज होती है तो गृहयुद्ध हो सकता है. भाजपा पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि यह पार्टी देश को बांटने का प्रयास कर रही है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा.
बता दें कि देश में असम इकलौता राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था लागू है. असम में सिटिजनशिप रजिस्टर देश में लागू नागरिकता कानून से अलग है. यहां असम समझौता 1985 से लागू है और इस समझौते के मुताबिक, 24 मार्च 1971 की आधी रात तक राज्य में प्रवेश करने वाले लोगों को भारतीय नागरिक माना जाएगा. नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) के मुताबिक, जिस व्यक्ति का सिटिजनशिप रजिस्टर में नहीं होता है उसे अवैध नागरिक माना जाता है्. इसे 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था. इसमें यहां के हर गांव के हर घर में रहने वाले लोगों के नाम और संख्या दर्ज की गई है.
एनआरसी की रिपोर्ट से ही पता चलता है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं है. वर्ष 1947 में भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद कुछ लोग असम से पूर्वी पाकिस्तान चले गए, लेकिन उनकी जमीन असम में थी और लोगों का दोनों और से आना-जाना बंटवारे के बाद भी जारी रहा. इसके बाद 1951 में पहली बार एनआरसी के डाटा का अपटेड किया गया.