देश के संस्थानों प एक खास विचारधारा को थोपने के आरोप भाजपा सरकार पर लगते रहे हैं. ऐसे में यह खबर देश को झकझोड़ देने वाली है कि मोदी सरकार सिविल सेवा के लिये चयनित अफसरों का कैडर आवंटन परीक्षा में उनके पार्फार्मेंस के बजाये चयन के बाद प्रशिक्षण के आधार पर करना चाहती है.
नौकरशाही मीडिया
इसके लिए पीएमओ ने विभिन्न मंत्रालयों से इस बारे में उनकी राय पूछा है. अब सवाल यह है कि पीएमओ अगर किसी मंत्रालय से उसकी राय पूछे तो उसकी मजाल नहीं कि वह पीएमओ की इच्छा के विरुद्ध अपनी राय दे दे.
पीएमओ हता है कि लोकसेवा आयोग द्वारा विभिन्न तीन फेजों में परीक्षा दे कर अंतिम रूप से चयनित अफसर को जो कैडर और सेवा आवंटित होती है उसमें परिवर्न लाया जाये. चयन के बाद इन तमाम प्रोवेशनर्स को तीन महीने का प्रशिक्षण दिया जाये और उसके बाद कैडर का ओ सेवा का निर्धारण हो.
अनेक वर्तमान व पूर्व आईएएस अफसर इस प्रयास के पीछे आरएसएस का दिमाग महसूस कर रहे हैं. डीएमके के नेता एमके स्टालिन ने इसे दलित-पिछड़ों के आरक्षण को समाप्त करने वाला कदम बताते हुए इसका विरोध किया है.
यहां सवाल यह है कि लोकसावा आयोग एक वर्ष की लम्बी चयन प्रक्रिया के बाद ही अफसरों की योग्यता का पता लगाती है, ऐसे में उसके ऊपर एक अन्य एजेंसी को थोपना, लोक सेवा आयोग के अधिकारों को ध्वस्त करने जैसा है.
उधर रिटायर्ड आईएएस अधिकारी एमए इब्राहिमी ने कहा है कि पीएमओ की इस सोच के पीछे एक खास विचार वाले अफसरों को खोज खोज कर उन्हें मनोनुकूल कैड़र और सेवा आवंटिक करना है.
कुछ लोगों का मानना है कि इस पूरे मामले के पीछे संघ के थिंकटैंक का दिमाग लगा है. जो यह चाहता है कि तीन महीने के प्रशिक्षण के दौरान व्यूरोक्रेट्स के अंदर भी संघी मानसिकता विकसित की जाये और उन्हें महत्वपूर्ण सेवायें या कैडर आवंटित किये जायें.
हालांकि इस प्रयास का विरोध भी शुरू हो गया है. इस विरोध के बाद पीएमओ के एक अधिकारी ने द प्रिंट को बताया है कि सरकार इस मामले में विक्लप और संभावनाओं का पता लगा रही है, वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है.