भाजपा के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में वन नेशन वन इलेक्शन बिल पेश किया, जिसका इंडिया गठबंधन के दलों ने भारी विरोध किया। कांग्रेस, सपा, टीएमसी, राजद, वाम दलों ने जबरदस्त विरोध किया। भाजपा के लिए बिल को पास कराना बेहद मुश्किल लग रहा है। फिलहाल बिल को विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया गया। साफ है बिल को सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है। याद रहे प्रधानमंत्री मोदी को लोकसभा में अकेले दम बहुमत नहीं हैं।
लोकसभा में कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने बिल को सदन में पेश किया। कांग्रेस, सपा, टीएमसी, राजद सहित सभी विपक्षी दलों ने विरोध किया। एक बात सभी विपक्षी दलों ने कही कि वन नेशन वन इलेक्शन संविधान के विरुद्ध है। संविधान में संघीय ढांचे की व्यवस्था की गई है। एक देश एक चुनाव संघीय ढांचे को कमजोर करेगा और निरंकुशता को बढ़ाएगा। सपा के देवेंद्र यादव ने कहा कि जो चुनाव आयोग 8 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव सही से नहीं करा सकता, उसे बार-बार तारीख बदलनी पड़ती है, वह एक बार में पूरे देश में चुनाव कैसे करा सकता है।
कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने कहा कि सरकार के पास दो तिहाई बहुमत नहीं है। वन नेशन वन इलेक्शन पेश होते ही मिसफायर हो गया। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि यह बिल देश के संघीय ढांचे के खिलाफ है।
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लोकसभा मे कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने कहा कि संविधान और नागरिकों के वोट देने के अधिकार पर ये कानून हमला हैं, इसलिए हम इसका पुरजोर विरोध करते हैं। हमारे विरोध का आधार यह है कि चुनाव आयोग को ऐसी ताकत दी गई है, जिसमें वह राष्ट्रपति को अपना एक निर्णय दे सकता है कि कब निर्वाचन हो सकता है। संविधान निर्माताओं ने पहले कभी भी चुनाव आयोग की ऐसी ताकत नहीं बनाई है। चुनाव आयोग की सीमाओं के बारे में आर्टिकल 324 में बताई गई हैं। राष्ट्रपति सिर्फ काउंसिल ऑफ मिनिस्टर से सलाह लेते हैं, वह कभी भी चुनाव आयोग से सलाह नहीं लेते हैं। राष्ट्रपति आर्टिकल 356 के तहत गवर्नर की सिफारिश ले सकते हैं। लेकिन पहली बार सरकार ऐसा बिल लाई है, जिसमें अब राष्ट्रपति चुनाव आयोग से सलाह लेकर निर्णय ले सकते हैं। संविधान के मूल ढांचे में विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका के बीच में संतुलन का विवरण दिया गया, लेकिन इस बिल में राष्ट्रपति को शक्ति दी गई है कि वे अपने सुपरिंटेनटेंड से नए 82(A) के द्वारा विधानसभाओं को भंग कर सकते हैं- ऐसी शक्ति इस बिल में राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को दी गई है।
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