पांच साल में पहली बार राजद दफ्तर में नीतीश, साफ है संकेत
कहावत है एक तस्वीर हजार शब्दों पर भारी होती है। इसका बेहद ठोस उदाहरण है यह तस्वीर। पांच साल में पहली बार राजद दफ्तर में नीतीश और तेजस्वी का पोस्टर।
कुमार अनिल
2015 में तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार साथ थे। यह दोस्ती 2017 तक चली थी। उसके बाद दोनों अलग-अलग हो गए। अब पांच साल बाद पहली बार राजद के दफ्तर में नीतीश कुमार का पोस्टर लगा है। यह साधारण बात नहीं है। राजनीति का ककहरा समझने वाले लोग भी इस तस्वीर का संकेत पढ़ सकते हैं।
यह पोस्टर दो कहानियां बयां करता है। पहला यह कि दोनों दल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तोते से डरनेवाले नहीं हैं। भले ही सीबीआई ने लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के आवास पर छापा मारा हो, पर छापे का उद्देश्य मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी डराना है ताकि वे कोई बड़ा निर्णय नहीं लें। नीतीश कुमार के बदले तेवर और भाजपा केंद्रीय नेतृत्व की इच्छा के विपरीत जातीय जनगणना की दिशा में कदम बढ़ाने से भाजपा परेशान है। इस पोस्टर से एक दूसरा संकेत भी साफ है कि राजद जातीय जनगणना पर नीतीश के साथ है या नीतीश कुमार इस सवाल पर राजद के साथ जाने से परहेज नहीं करेंगे।
राजद की तरफ से लगातार बयान दिया जा रहा है कि सीबीआई का छापा बिहार में जातीय जनगणना रोकने के लिए मारा गया। भाजपा नहीं चाहती कि बिहार में जातीय जनगणना हो और इस सवाल पर नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव करीब आएं। राजद के ऐसे लगातार बयानों के बावजूद आज तक किसी जदयू प्रवक्ता ने राजद के बयानों का खंडन नहीं किया है। जातीय जनगणऩा के सवाल पर जदयू के किसी प्रवक्ता ने राजद के प्रयासों का विरोध नहीं किया है। आप गौर करेंगे, जो जदयू प्रवक्ता रमजान से पहले तक राजद के खिलाफ रोज कुछ बोलते थे, वे भी चुप हैं। यह भी बताता है कि बिहार किसी उथल-पुथल के मुहाने पर खड़ा है।
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