मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कटाई के बाद खेतों में पराली (फसल अवशेष) जलाये जाने का पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव और उपज में कमी होने जैसे खतरों को लेकर चेतावनी देते हुये कहा कि फसल अवशेष जलाने वाले किसान सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रह जाएंगे।
श्री कुमार ने फसल अवशेष प्रबंधन पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद कहा कि किसानों को यह बात समझानी होगी कि पराली जलाने से खेतों में ऊपज में कमी आने के साथ-साथ पर्यावरण पर भी असर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि किसानों को यह समझाना होगा कि यदि पराली को इकट्ठा कर कई अन्य प्रकार की चीजों का निर्माण कराया जाए तो अनाज के साथ-साथ इससे भी किसानों की आमदनी बढ़ेगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमलोग किसानों को 75 पैसे प्रति यूनिट पर बिजली उपलब्ध करा रहे हैं जबकि एक लीटर डीजल पर 60 रुपए तक की सब्सिडी भी दे रहे हैं। किसानों की हर संभव सहायता कर रहे है, जो किसान पराली जलाएंगे वो सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस सम्मेलन में परिचर्चा से जो उपयोगी बातें सामने आएंगी उसे कार्य योजना में शामिल किया जाएगा।
श्री कुमार ने कहा कि फसल कटाई के बाद पराली में आग लगाने से पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है। पहले दिल्ली-पंजाब में इसका प्रचलन ज्यादा था, जिसका असर दिल्ली के वातावरण पर भी पड़ाता है। बिहार में भी कुछ स्थानों पर अब पराली जलायी जाने लगी है। हवाई यात्राओं के दौरान उन्हें भी इसका आभास हुआ। इसे रोकने के लिए कृषि विभाग को अभियान चलाने की सलाह दी गई है। उन्होंने कहा कि इसके विरुद्ध पंजाब हरियाणा में भी अभियान चलाया गया है लेकिन फिर भी यह रुक नहीं पा रहा है। इसके मूल कारणों को भी जानना-समझना होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार में कम्बाइंड हार्वेस्टर का उपयोग बढ़ता जा रहा है, जो ज्यादातर पंजाब से आता है। यह भी संभावना है कि कम्बाइंड हार्वेस्टर के उपयोग करने वाले किसानों को पराली जलाने के संबंध में गलत जानकारी दी जा रही है।