पूर्व वरिष्ठ आईएएस विजय प्रकाश ने हिला देनेवाली आपबीती लिखी है। वे साधारण दस्त से पीड़ित थे, लेकिन ऐसी गलत दवा दी कि मरते-मरते बचे। पढ़िए उन्हीं की जुबानी-

विजय प्रकाश, पूर्व वरिष्ठ आईएएस

आज मैं पारस एचएमआरआई अस्पताल, पटना में इलाज कराने का एक भयानक अनुभव साझा करने जा रहा हूं ताकि हम इलाज करते समय सावधान हो रहें, क्योंकि ऐसी घटना किसी के साथ भी हो सकती है।

मैं मार्च, 2022 के प्रथम सप्ताह में तीव्र दस्त और बुखार से पीड़ित हो गया। तीन दिन घर पर ही इलाज कराया। चौथे दिन 11 मार्च को बुखार तो ख़त्म हो गया पर दस्त कम नहीं हो रहा था। सुबह अचानक चक्कर भी आया। चूंकि कुछ वर्षों से मैं एट्रियल फिब्रिलिएशन (एएफ) का रोगी रहा हूं, इसीलिए सदा एक कार्डिया मोबाइल 6L साथ रखता हूं। अपने कार्डिया मोबाइल 6L पर जांच किया तो पता चला कि पल्स रेट काफी बढ़ा हुआ था और इकेजी रिपोर्ट एट्रियल फिब्रिलिएशन (एएफ) का संकेत दे रहा था। तुरत अस्पताल चलने का निर्णय हुआ। पारस एचएमआरआई अस्पताल घर के करीब है। सीधे हम उसके इमरजेंसी में गए। इमरजेंसी में डॉक्टर चन्दन के नेतृत्व में व्यवस्था अच्छी थी। तुरत इसीजी लिया गया। उसमें भी एएफ की ही रिपोर्ट आई। आधे घंटे बाद इसीजी सामान्य हो गया था। साइनस रिदम बहाल हो गया।

आपात स्थिति में प्रारंभिक देखभाल के बाद मुझे डॉ. फहद अंसारी डीसीएमआर 3817 की देखरेख में एमआईसीयू में स्थानांतरित कर दिया गया। जब मुझे एमआईसीयू में ले जाया गया, तो मुझ पर दवाओं और परीक्षणों की बमबारी शुरू हो गई। कई तरह के टेस्ट प्रारम्भ हो गए और कई प्रकार की दवाइयाँ लिखी गईं।

पूर्व वरिष्ठ आईएएस विजय प्रकाश

12 मार्च को सुबह दस्त नियंत्रण में आ गया। पर मुझे बताया गया कि हीमोग्लोबिन का स्तर नीचे हो गया है और प्लेटलेट की संख्या भी काफी कम हो गई है। अतः डॉक्टर रोग के निदान के संबंध में स्पष्ट नहीं थे। उन्हें लग रहा था कि कोई गंभीर इन्फेक्शन है। मैंने बताया भी कि मैं थाइलेसेमिया माइनर की प्रकृति का हूँ अतः मेरा हीमोग्लोबिन का स्तर नीचे ही रहता है और प्लेटलेट की संख्या भी कम ही रहती है। खून जांच में अन्य आंकड़े भी सामान्य से भिन्न रहते हैं। इसे ध्यान में रखकर ही निर्णय लेना बेहतर होगा। डॉक्टर ने खून चढ़ाने का निर्णय लिया और दोपहर में खून की एक बोतल चढ़ा दी गई।

दोपहर में ही मेरे अटेंडेंट को कॉम्बीथेर और डोक्सी नमक दवा बाजार से लाने कहा गया। ये अस्पताल की दुकान में उपलब्ध नहीं थे। मैंने दवा के बारे में पूछा। नर्स ने कॉम्बिथेर बताया। इंटरनेट से पता चला कि यह एक मलेरियारोधी दवा है। अस्पताल आने के बाद से ही मुझे बुखार नहीं था। मेरा दस्त भी नियंत्रण में था। फिर मलेरियारोधी दवा क्यों? क्या मलेरिया परजीवी मेरे रक्त में पाये गये हैं? इस सम्बन्ध में मैंने नर्स से पूछताछ की। उनका कहना था कि चूँकि डॉक्टर ने यह दवा लिखी है इसलिए वे यह दवा खिला रही हैं। यदि मैं दवा नहीं खाऊंगा तो वे लिख देंगी कि मरीज ने दवा लेने से मना किया। इसपर मैंने कहा कि एक तरफ मुझे खून चढ़ाया जा रहा है क्योंकि हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट कम बताये जा रहे हैं और मुझे एएफ भी है दूसरी ओर अनावश्यक दवा दी जा रही है, जबकि मेरा बुखार और दस्त दोनों नियंत्रण में है। मैंने डॉक्टर से पुनः पूछकर ही दवा खाने की बात कही। मेरे बार-बार अनुरोध करने पर नर्स ने आईसीयू के प्रभारी डॉक्टर प्रशांत को बुलाया। मैंने उनसे भी यही अनुरोध किया कि रक्त परीक्षण में मलेरिया परजीवी की स्थिति देखने पर ही ये दवा दी जाय। इस सम्बन्ध में वे प्रभारी डॉक्टर से संतुष्ट हो लें। डॉक्टर प्रशांत ने सम्बंधित डॉक्टर से बात की और इस दवा को बंद करा दिया, क्योंकि मलेरिया परजीवी हेतु रक्त परीक्षण में परिणाम नकारात्मक था। इस प्रकार मैं एक अनावश्यक दवा के कुप्रभाव से बच गया।

यहाँ मैं यह उल्लेख करना आवश्यक समझता हूँ कि हॉस्पिटल में दवाएं नर्स देती हैं। इसे मरीज को देखने नहीं दिया जाता और डॉक्टर का पुर्जा भी मरीज को नहीं दिखाया जाता। सामान्यतया दवा देते समय मरीज को यह बताया भी नहीं जाता कि कौन सी दवा दी जा रही है। अतः दवा देने की पूरी जिम्मेदारी डॉक्टर और नर्स पर ही रहती है।

यह संयोग ही था कि कॉम्बिथेर को बाजार से मंगवाया गया था। इसलिए मुझे इस दवा के बारे में जानकारी मिली और मैं इस दवा को लेने से पहले रक्त परीक्षण का रिपोर्ट देख लेने का अनुरोध कर पाया।

13 मार्च को मेरी स्थिति में काफी सुधार था। दोपहर में मुझे सिंगल रूम  में भेज दिया गया। आईसीयू से निकलने का ही मरीज की मनः स्थिति पर सकारात्मक असर पड़ता है। मैं बिल्कुल सामान्य महसूस करने लगा। रात में मैंने सामान्य रुप से भोजन किया। नींद भी अच्छी आयी।

14 मार्च की सुबह मैं बिल्कुल सामान्य था। मैंने दाँत ब्रश किए, दाढ़ी बनाई। फल का रस भी पिया।

सुबह करीब 6.45 बजे मैं अपने लड़के से मोबाइल पर बात कर रहा था। उस समय ड्यूटी पर तैनात नर्स दवा खिलाने आई। उसने मुझे थायरोक्सिन की गोलियों की एक बोतल दी और मुझे इसे खोलकर एक टैबलेट लेने को कहा। उसने एक गोली निकालकर दी और मैंने दवा ले ली। उसने मुझे दो और दवाएं दी, उसे भी मैंने खा लिया।

इसी बीच उसने दराज से एक शीशी निकाली। मैंने इस दवा के बारे में पूछताछ की क्योंकि यह मेरे अस्पताल में रहने के दौरान पहले कभी नहीं दी गई थी। उसने कहा कि यह एक एंटीबायोटिक है। मैंने एंटीबायोटिक के नाम के बारे में पूछा क्योंकि यह एक नई दवा थी जो मुझे दी जा रही थी और मुझे यह एहसास था कि मैं ठीक हो रहा हूँ। मेरे प्रश्न का उत्तर दिए बिना, उसने आईवी कैनुला के माध्यम से दवा देना शुरू कर दिया।

जैसे ही यह नई दवा मेरे शरीर में आई, मेरी रीढ़ में जलन शुरू हो गया। मेरा शरीर गर्म होता जा रहा था। मेरा शरीर कांप रहा था। मुझे चक्कर आने लगा। मैंने फिर नर्स से पूछा कि उसने कौन सी दवा दी है। पर वह चुप रही। मेरी ऊर्जा कम होती जा रही थी। मैंने फिर पूछा, ‘मैं बिल्कुल भी अच्छा महसूस नहीं कर रहा हूँ। कौन सी दवा दी हो।’  इस नई दवा की प्रतिक्रिया बढ़ती जा रही थी। मुझे मस्तिष्क में अजीब सा स्पंदन हो रहा था। लग रहा था गिर जाऊंगा। मुझे लग रहा था कि ब्रेन हेमरेज तो नहीं हो रहा है। मेरे बार-बार बोलने पर भी वह नर्स लगातार मौन बनी रही। फिर मैं सारी ऊर्जा इकठ्ठा कर जोर से चिल्लाया, ‘तबीयत बहुत ख़राब हो रही है। दवा बंद करो’। फिर भी उसके हाव-भाव में कोई तेजी नहीं दिखी और वह बहुत धीरे-धीरे दवा बंद करने आई। खैर, दवा बंद हो गयी।

मैंने तुरंत एक डॉक्टर बुलाने का अनुरोध किया। पर कोई नहीं आया। नर्स ने आकर मेरा बीपी लिया। कुछ देर बाद ड्यूटी पर डॉक्टर होने का दावा करने वाला एक व्यक्ति आया। उसे भी मैंने सारी बातें बताई। वह भी मेरी हालत के बारे में कम चिंतित लग रहा था। उसने दराज खोली और कोई दवा ली और बाहर चला गया। मैंने उसे तुरंत ईसीजी करने के लिए कहा ताकि मैं अपने दिल की स्थिति के बारे में सुनिश्चित हो सकूं। मुझे बड़ी राहत मिली जब मैंने पाया कि ई0 सी0 जी0 में कोई अनियमितता नहीं थी और ह्रदय की धड़कन साइनस रिद्म में होना बता रहा था। इस प्रक्रिया में करीब एक घंटा व्यतीत हो गया पर मेरी बेचैनी जारी रही। यद्यपि शरीर में हो रहे बदलाव में धीरे-धीरे सुधार हो रहा था पर रीढ़ में असामान्य स्पंदन जारी रहा। यह कई दिनों तक चलता रहा।

मेरी पत्नी डॉ मृदुला प्रकाश, जो मेरे साथ मेरे वार्ड में थीं, मेरी स्थिति ख़राब होते देख चिंतित हो गयी। उन्होंने नर्स से दवा का नाम पूछा। नर्स ने इंजेक्शन की एक दूसरी शीशी जो ड्रावर में रखा था उसे दिखाया और कहा कि यही सुई दी गयी है। उन्होंने इसका एक फोटो ले लिया। यह एपिनेफ था। उसी समय मेरी लड़की नूपुर निशीथ का फोन आ गया। उसे जब मेरी स्थिति बताई गई तो उसने पूछा कि पापा को कौन सी दवा दी गई है। दवा का नाम एपिनेफ बताने पर उसने कहा कि यह तो अंटी आजमटिक रोग की दवा है जो इमेर्जेंसी में दी जाती है  इसका हृदय पर काफी साइड इफेक्ट होता है। इसे क्यों दिया जा रहा है?

तब घबड़ाकर डॉ प्रकाश नर्सों की डेस्क पर गईं और मेडिसिन लिस्ट मांगा तथा डॉक्टर का प्रेसक्रिप्शन भी मांगा। उन्हें न तो दवा का लिस्ट दिया गया और न डॉक्टर का प्रेसक्रिप्शन ही दिखाया गया। वह इस्तेमाल की हुई शीशी भी चाहती थी जिसे उन्हें दिखाया तो गया। पर जब उन्होंने इसे मांगा, तो उन्हें यह नहीं दिया गया क्योंकि उन्हें कहा गया कि इसका इस्तेमाल स्थानीय जांच में किया जाएगा। जब उन्होंने पूछा कि दवा क्यों दी गई है तो उन्हें बताया गया कि एपिनेफ को एसओएस के रूप में लिखा गया है। प्रभारी नर्स ने कहा कि उपस्थित नर्स ने शारीरिक परीक्षण के माध्यम से नाड़ी की दर 63 पाये जाने के कारण उक्त दवा दी थी। इसपर उन्होंने कहा कि नर्स ने दवा देने से पहले नब्ज को छुआ तक नहीं था। नाड़ी की दर, रक्त चाप और तापमान तो दवा देने के बाद जब स्थिति खराब हो गई थी तब ली गई थी तो किस प्रकार नाड़ी के दर को आधार बनाकर यह दवा दिये जाने की बात कही जा रही है।

वार्ड में मरीज के चिकित्सा से सम्बंधित फ़ाइल नहीं रखी गयी थी। अतः किसी चीज के बारे में कोई जानकारी मरीज या उसके अटेंडेंट को उपलब्ध नहीं था। चूँकि सारी जानकारी नहीं दी जा रही थी और गलत सूचना दी जा रही थी, अतः मामला काफी संदेहास्पद बनता जा रहा था। सूचनाओं मे अपारदर्शिता मामले को काफी गंभीर बना रहा था ।

घटना के लगभग 4.45 घंटे बाद उपस्थित चिकित्सक डॉ. फहद अंसारी ने लगभग 11.30 बजे वार्ड का दौरा किया। पहले तो उन्होंने अपने प्रोफाइल के बारे में बात की और कहा कि यह उनके लिए काला दिन है। उन्होंने घटना पर खेद जताया। उसने मेरी छाती की जांच की, मेरे मल के बारे में पूछा और कहा कि वे मुझे तुरंत छुट्टी दे देंगे। कुछ जांच रिपोर्ट लंबित हैं, जो कुछ दिनों में आ जाएंगी। उन रिपोर्ट के बारे में वह ओपीडी पर अपनी राय देंगे।

वह यह नहीं बता सके कि एपीनेफ सुई क्यों लिखी गई थी या क्यों दी गयी। यह आश्चर्यजनक है कि एपिनेफ्रीन जैसी दवा जिसे इंट्रामस्क्यूलर या सब क्यूटेनस दिया जाता है, उसे किन परिस्थितियों में नसों के माध्यम से दिया गया। यह भी स्पष्ट नहीं है कि ऐसी दवा जो हमेशा एक विशेषज्ञ डॉक्टर की उपस्थिति में या आईसीयू में दी जाती है, उसे अर्ध या गैर-प्रशिक्षित वार्ड नर्स द्वारा देने के लिए कैसे छोड़ दिया गया। यहाँ तक कि प्रभारी नर्स भी उपस्थित नहीं थी। मुझे यह भी आश्चर्य होता है कि जब स्पष्ट रूप से एसओएस का कोई मामला नहीं था तो एसओएस दवा का प्रबंध ही क्यों किया गया। अगर मैंने समय पर विरोध नहीं किया होता और दवा बंद न करा दिया होता, तो शायद मैं कहानी सुनाने के लिए यहां नहीं होता। मैं इस बात से भी हैरान हूं कि इस तरह के ड्रग रिएक्शन केस के बाद भी मेरी सेहत की पूरी जांच किए बिना मुझे कैसे छुट्टी दे दी गई।

जब लगभग 2.30 बजे अपराह्न में मुझे छुट्टी दी गई, तो मुझे डिस्चार्ज सारांश सौंपा गया। मैंने पाया कि इसमे मेरे लिए लिखे गये पूर्जे और दी गयी दवाओं के विवरण पूरी तरह से गायब थे। चिकित्सा विवरण देने के बजाय, डिस्चार्ज सारांश में गोलमटोल वाक्य लिखे थे।

यहां तक ​​कि इसमें खून चढ़ाने की जानकारी भी गायब थी। मैंने यह भी पाया कि भर्ती के समय मेरे दिल की स्थिति का विवरण भी रिपोर्ट में लिखा नहीं था। मेरे एमआईसीयू में रहने का भी कोई जिक्र नहीं था। एपिनेफ दिये जाने और इसका मेरे ऊपर हुए रियक्सन का भी कोई वर्णन नहीं था। ऐसा प्रतीत होता है कि जानबूझकर महत्वपूर्ण तथ्यों और विवरणों को रिपोर्ट से छिपाया गया है।

मैंने जब अस्पताल प्रशासन को इस सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी देने के लिए एवं विस्तृत जांच कराने के लिए पत्र लिखा तो मुझे डिस्चार्ज समरी को पुनरीक्षित कर भेजा गया पर उसमें भी एपीनेफ के न तो डॉक्टर द्वारा लिखने का जिक्र था और न उसे मुझे सुई के रूप में देने का। अस्पताल प्रशासन ने इस सम्बन्ध में आतंरिक जांच कराकर उसका प्रतिवेदन साझा करने की बात कही।

अस्पताल के डॉक्टर ने इस प्रकरण पर मौखिक रुप से क्षमा जरूर मांगी पर अभी तक अस्पताल प्रशासन ने आंतरिक जांच का कोई प्रतिवेदन मेरे साथ साझा नहीं किया तथा मुझे यह भी नहीं बताया कि व्यवस्था में क्या सुधार की गई है जिससे यह पता चले कि भविष्य में किसी मरीज के साथ इस प्रकार की घटना नहीं होगी ।

मैं अभी तक सदमे में हूँ कि यदि एपीनेफ को चिल्लाकर समय से बंद न कराया होता तो क्या हुआ होता।

जब घटना हो भी गयी तो अस्पताल प्रशासन मेरे स्वास्थ्य की चिंता न कर इस बात में व्यस्त रहे कि कैसे यह बात रिकॉर्ड में न आये। मेरा मन अभी भी इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि अस्पताल में कोई दवा खिलाई जाएगी या इंजेक्शन दिया जाएगा और मेडिसिन लिस्ट में उसे शामिल तक नहीं किया जाएगा। क्या यह जहर था कि इसे लिखने से बचा जा रहा है? या किसी साजिश के तहत इसे दिया गया था तथा इसका जिक्र सभी जगह से हटा दिया जाय। अस्पताल के सिस्टम का पूरी तरह फेल हो जाने का इससे बड़ा और क्या प्रमाण हो सकता है।

यह प्रश्न भी विचारणीय है कि कैसे ओवर मेडिकेशन से बचा जाय। एक साथ कई एंटीबायोटिक शरीर में दे दिए जाने की अवस्था में मरीज के शरीर पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा, यह गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।

ये प्रश्न एक अस्पताल या एक डॉक्टर का नहीं वरन पूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था के हैं । आइये हम सब मिलकर सोचें कि इन समस्याओं से कैसे निजात पाया जाय ताकि किसी अन्य व्यक्ति को इस तरह की समस्या का सामना न करना पड़े।

(वरिष्ठ आईएएस विजय प्रकाश के फेसबुक वॉल पर लिखी आपबीती का संपादित हिस्सा)

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