अदालत ने बिहार बोर्ड अध्यक्ष आनंद किशोर को किया शर्मशार, कहा आप पद पर बने रहने योग्य नहीं
ढाई साल पहले रिजल्ट घोटाले से बदनाम सरकार ने बिहार बोर्ड की छवि सुधारने की जिम्मेदारी पटना के प्रमंडलीय आयुक्त आनंद किशोर को सौंपी थी. पद संभालने के बाद आनंद ने ऐसे पापुलर फैसले लेने शुरू किये कि वह लगातार मीडिया की सुखियों में बने रहे. हर दिन नयी घोषणा. हर दिन नये फैसले ऐसे लेने लगे कि लगने लगा था कि आनंद किशोर बिहार बोर्ड का कायकल्प करके छोड़ेंगे. मीडिया भी उनके गुणगान में लग गया था.
पर अब उनके कर्मों को हिसाब सामने आ रहा है. हालत यहां तक पहुंच गया है कि अब पटना हाई कोर्ट उन्हें भरी सभा में शर्मशार कर रहा है. शुक्रवार को तो अदालत ने यहां तक कह डाला कि “ऐसे अधिकारी चेयरमैन पद पर बने रहने के योग्य नहीं हैं”.
दर असल बोर्ड द्वारा अदालत की अवमानना के मामले पर सुनवाई की जा रही थी. कोर्ट ने कहा कि ऐसे अधिकारी चेयरमैन जैसे पद पर बने रहने के योग्य नहीं हैं। कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसा नहीं है तो फिर वह जानबूझ कर कोर्ट के आदेश को मानने से इनकार कर रहे हैं। फिर छोटे अधिकारी से क्या उम्मीद की जा सकती है.
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आनंद किशोर पर अवमानना केस चलाने के आदेश के दौरान पटना हाईकोर्ट ने पूछा कि चेयरमैन की नजर में इन स्कूलों की स्थिति क्या है? कोर्ट के आदेश से इन सभी स्कूलों की मान्यता बहाल हो गई, फिर भी इतनी छोटी सी बात बोर्ड के चेयरमैन को समझ में नहीं आती है.
अदालत ने क्यों कहा ऐसा
दर असल वैशाली के कुछ स्कूलों की मान्यता बोर्ड ने रद्द कर दी थी. इसके बाद इन स्कूलों ने हाईकोर्ट की शरण ली. आवेदकों की ओर से अधिवक्ता अरुण कुमार ने बताया कि पूर्व में बोर्ड ने स्कूलों को दी गई संबद्धता रद्द कर दी थी, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने 24 अगस्त 2017 को बोर्ड के आदेश को निरस्त कर दिया था। इस आदेश की वैधता को बोर्ड ने चुनौती दी थी। जिस पर हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकलपीठ के फैसले में आंशिक संशोधन करते हुए संबद्धता आदेश को निरस्त करने के आदेश पर अपनी मुहर लगा दी। .