गौरतलब है कि स्वदेश टोइंग नामक जाम बस्टर एजेंसी पटना की सड़कों से जाम हटाने के नाम पर वाहनों को उठाने पर किये जाने वाले फाइन का 85 प्रतिशत खुद लेती है जबकि मात्र 15 प्रतिशत सरकार के खाते में आता है. इस प्रकार प्रति दिन वह 90 हजार रुपये की कमाई करती थी जबकि सरकार के खाते में महज 16 हजार रुपये जाते हैं.
कमिशनर आनंद किशोर व जोनल आईजी नैयर हसनैन खान ने इस मामले में जांच टीम गठित की थी. टीम ने पाया कि इस मामले में निजी एजेंसी काफी मनमानी करती है और खूब कमा रही है. टीम की सिफारिश के बाद कम्पनी को वाहनों के उठाव के काम से रोक दिया गया है.
साथ ही पटना के एसपी प्राणतोष कुमार दास को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है. अगर इस मामले में कोई गड़बड़ी पायी गयी तो ट्रैफिक एसपी पर भ्रष्टाचार का केस चल सकता है. कमिशनर आनंद किशोर इस मामले में किसी तरह की नरमी बरतने के पक्ष में नहीं हैं. उनका कहना है कि इस मामले मे जो कोई भी लिप्त पाया गया उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी.
इस मामले में पाया गया है कि निजी कम्पनी को तीन साल का टेंडर दिया गया था. जबकि कि ऐसे मामलों में किसी कम्पनी को मात्र 11 महीने का टेंडर इश्यु किया जाना चाहिए था.
इस मामले में ट्रैफिक एसपी ने दैनिक भास्कर को बताया है कि टेंडर हमने अकेले नहीं दिया था। इसकी जानकारी सभी वरीय अधिकारियों को थी. टेंडर की कॉपी अधिकारियों को भी गई थी। कोई एजेंसी करोड़ाें का खर्च कर 11 माह या एक साल का टेंडर क्यों लेती. अगर आगे उसका टेंडर खत्म होता तो उसकी पूंजी नहीं फंसती. 11 माह या एक साल का टेंडर कोई नहीं लेता। उनका दावा है कि एक भी गलत गाड़ी को जाम बस्टर ने नहीं उठाया.
ज्ञात हो कि जाम बस्टर छह पहिया व ट्रक, बस आदि से जुर्माना के रूप में 1100, चार पहिया वाहनों से 750, तीन पहिया वाहनों से 675 तथा दो पहिया वाहनों से 445 रुपए वसूलती थी, पर सरकार के राजस्व में मात्र सौ रुपए जाते थे।