रवीश कुमार उस राजनीतिक संस्कार पर कड़ा प्रहार कर रहे हैं जिसके तहत पटना युनिवर्सिटी ने अपने दो बड़े होनहारों को सौ साल के कार्यक्रम में नहीं बुला रहा है.
पटना यूनिवर्सिटी सौ साल में इतना छोटा हो गया कि अपने पूर्व छात्रों को बुलाने का साहस ही नहीं जुटा सका। शत्रुध्न सिन्हा और यशवंत सिन्हा को सौ साला जश्न में नहीं बुलाया गया है। जबकि ये दोनों अभी तक बीजेपी में ही हैं। यशवंत सिन्हा ने आवाज़ उठाकर बीजेपी का समय रहते भला ही किया है। तभी तो सरकार हरकत में आई है। जिस वीसी को वहाँ के छात्र भी नहीं जानते होंगे, उन्हें यह बात कैसे समझ आ गई कि इन्हें नहीं बुलाना चाहिए। शर्मनाक हरकत है। हमारी राजनीति ओछी होती जा रही है।
सीना फुलाने से अच्छा है अपना दामन बड़ा कीजिए। बाहों को फैला कर सबका स्वागत कीजिए। टिकट बाँटने में धाँधली का आरोप तो बिहार चुनाव के समय आर के सिंह ने भी लगाया था, वो अब मंत्री हैं। भगवा आतंक का इशारा करने वाले आर के सिंह ही थे।
शत्रुध्न सिन्हा बीजेपी के पहले स्टार प्रचारक हैं। जब लोग बीजेपी से दूर भागते थे तब शत्रुध्न सिन्हा बीजेपी के लिए प्रचार करते थे। पुरानी बात नहीं भूलनी चाहिए। लोग कह रहे हैं कि वे सांसद कैसे रहे हैं, पता कर लीजिए। सांसद कैसे रहे हैं, इस पर अलग से बहस हो सकती है मगर इस पैमाने से तो पटना यूनिवर्सिटी के वीसी को ही प्रधानमंत्री के सामने नहीं होना चाहिए। क्या सांसदों का काम देखकर उनके क्षेत्र में बुलाने का कोई नया नियम शुरू हुआ है?
पटना यूनिवर्सिटी की हालत दयनीय हो चुकी है। क्लास में पढ़ाने के लिए टीचर नहीं है। दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि यह देश के घटिया यूनिवर्सिटी में टॉप टेन में आती होगी। इसने अपने छात्रों को न बुलाकर घटिया ही काम किया है। पटना शहर को यह बात नोटिस करनी चाहिए और ख़ासकर बीजेपी के कार्यकर्ताओं को। क्या यही उनके परिवार का संस्कार है? जब शत्रुध्न सिन्हा जैसे साधन संपन्न के साथ ऐसा हो सकता है तब सोचिए आपके साथ क्या क्या होगा ?
शत्रुध्न सिन्हा पटना यूनिवर्सिटी और मुंबई में बिहार के ब्रांड अंबेसडर रहे हैं। नीतीश कुमार की भी खुलकर तारीफ करते रहे हैं। मुख्यमंत्री को भी छोटे दिल की राजनीति नहीं करनी चाहिए। भारत की राजनीति की यह शर्मनाक हरकत है।
पटना यूनिवर्सिटी पर प्राइम टाइम की यह सीरीज़ देखिए। किस तरह से देश के विश्वविद्यालयों को गोदाम में बदला जा रहा है। जहाँ छात्रों को आलू के बोरे की तरह तीन चार साल तक रखा जाता है। उसके बाद जब वे बेकार हो जाते हैं तो बेरोज़गार बने रहने के लिए छोड़ दिया जाता है। जिस भी पार्टी की सरकार हो, अब हर दल को राज्यों में पंद्रह साल तक हुकूमत करने का मौका मिल चुका है, सबका रिकार्ड रद्दी है।