आजादी के नायक Peer Ali Khan; अंग्रेजी छावनी पर हमला किया और बदले में शहादत को गले लगा लिया
पीर अली खान (Peer Ali Khan) यह कहते हुए अंग्रेजों से लड़े थी कि आजादी के लिए जान देना देश से प्यार करना है इनका जन्म 1820 में बिहार के आजमाबाद में हुआ था.
इनके पिता का नाम मेहर अली खान था. युवा पीर अली ने अपने ज्ञान पीपासा को शांत करने के लिए अपना गांव छोड़ा और उर्दु, फारसी और अरबी की शिक्षा प्राप्त की और अंत में पटना में पुस्तक विक्रेता के रुप में बस गये.
अंग्रेजों की बढ़ती दखलअंदाजियों के के कारण वह स्थानी क्रांतिकारी परिषद के सदस्य बन गये. उन्होंने हथियार प्राप्त करने के लिए मौलवी मोहम्मीद से मेल-जोल बढाया. जो अंग्रेजी हुकूमत का एक सिपाही था. उन्होंने उसी हथियार से दानापुर स्थित अंग्रेजी छावनी पर साहसिक हमला किया. इस घटना के बाद अंग्रेजों ने क्रांतिककारी परिषद के 43 सदस्यों समेत मौलाना पीर अली खान को गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में उन पर मुकदमा चाला. इस घटना को पटना षड्यंत्र के तौर पर इतिहास में दर्ज किया गया है.
Peer Ali Khan साहसिक व जाांबाज आजादी के नायक
इस मामले में मौलाना पीर अली ( Peer Ali Khan) समेत 9 लोगों के खिलाफ 1857 में विलियम टेलर द्वारा फांसी की सजा सुनाई गयी. मुकदमे तथा हिरासत के दौरान मौलाना से सूचनायें उगलवाने के लिए भारी यातनायें दी गयीं.
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उन्होंने अपना मुंह तब भी नहीं खोला जब अंग्रेजों की यातना से उनका शरीर लहूलुहान हो गया. अंत में उन्होंने साहसपूर्ण घोषणा की कि कभी-कभी किसी की जान बचाने के लिए चतुराई से काम लेना पड़ता है. लेकिन हमेशा जान ही बचाना इतना मायने नहीं रखता.कभी-कभी मातृभूमिक के लिए अपनी जान भी न्योछावर करना पड़ता है. और तब किसी के जीवन का बलिदान उसकी मातृभूमि से प्यार का सुबूत बन जाता है. तुमने मेरे साथियों को मेरी आंखों के सामने फांसी दी. अभी तुम और बहुतों को भी फांसी दोगे. तुम मुझे भी मार सकते हो लेकिन एक बाद याद रखना. ना तुम और ना ही कोई और ताकत इस सरजमीन पर पैदा सपूतों को का दमन कर सकेगा जो मातृभूमिक को आजाद कराने के लिए अपना खून बहाने को तैयार हैं.
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इस देश में आजादी के लिए खून का एक एक कतरा स्वतंत्रता सेनानियों के लिए चिंगारियां पैदा करेगा. तुम और तुम्हारी सरकार इन स्वतंत्रता सेनानियों की चिंगारियों में जल कर भस्म हो जाओगे.
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विलियम टेलर ने जिसने मौलाना पीर अली को फांसी की सजा सुनाई थी उसने इस घटना का उल्लेख किया है.
इस निर्भीक जवाब को सुन कर अंग्रेज अधिकारियों ने मौलाना के हाथों और पैरों में बेडियां पहना दी. उन्हें अमानवी तरीके से कड़ी यातनायें दी गयीं. अंत में मोलाना पीर अली फांसी के तख्ते पर बड़े निर्भीक हो कर खड़े रहे और मृत्यु का सम्मान के साथ सामना करने के लिए फांसी के फंदे को चूमा और 7 जुलाई 1857 का शहादत पा ली.