आज पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत देश में ऊंचाई की नयी इबारत लिख चुका है. महंगाई के सारे रिकार्ड ध्वस्त हो चुके हैं.
2013 में जब पेट्रोल की कीमतें महंगी हुई थीं तो विपक्ष में बैठ दो भाजपा नेताओं की भाषा पेट्रोल से भी ज्यादा ज्वलनशील थी. पर अब जब वे ही खुद सत्ता में हैं तो महंगाई पर उनकी जुबान लम्बी खामोशी का शिकार है.
कितने तीखे थे मोदी के स्वर, अब चुप्पी
मई 2012 के एक दूसरे ट्वीट में मोदी ने लिखा था, “पेट्रोल की कीमतों को बढ़ाने का फैसला संसद के सत्र के खत्म होने के एक दिन बाद लेना संसद की गरिमा को चोट पहुंचाना है.”
रुपैये ने अपनी कीमत खोई, और आज प्रधान मंत्री ने अपनी गरिमा खोई
एक अन्य ट्वीट में मोदी ने लिखा था, “यूपीए सरकार कसाईखानों को सब्सिडी देती है और डीज़ल की कीमतों को बढ़ाती है. क्या ये कांग्रेस की दिशा है?”
2014 में चुनावी प्रचार के दौरान मोदी को पता चल चुका था कि महंगाई के मुद्दे को भुनाने का सबसे अच्छा तरीका चुनाव प्रचार के द्वारा ही है. इसलिए मोदी का बैनर हर जगह दिख रहा था. इन बैनरों पर लिखा था.
‘बहुत हुई जनता पर पेट्रोल-डीज़ल की मार, अबकी बार मोदी सरकार’
इसी तरह सुष्मा स्वराज ने अंतराष्ट्रीय बाजार में रुपये के गिरते मूल्य पर तब एक तीखी टिप्पणी की थी. यह टिप्पणी काफी चर्चा का विषय बना रहा है
रुपैये ने अपनी कीमत खोई, और आज प्रधान मंत्री ने अपनी गरिमा खोई.
लेकिन आज जब भाजपा सत्ता के केंद्र में है और उसे पेट्रोलियम की कीमतों का दंश झेलना पड़ रहा है तो सारा देश भाजपा और उसके पुराने नारों की तरफ देख रहा है. लेकिन इस मामलेम में भाजपा के नेता और सरकार लम्बी चुप्पी को ही अपना ढ़ाल बनाये हुए हैं. लेकिन नरेंद्र मोदी को मालूम है कि पेट्रोल की ज्वलनशीलता किसी एक सरकार के राहें मुश्किल में नहीं डालती बल्कि इसका असर हर सत्ताधारी पार्टी पर पड़ता है.लिहाजा मोदी सरकार को इसका कोई विकल्प खोजना ही होगा