यह कर्नाटक चुनाव के चलते मोदी का जादू है कि पेट्रौलियम के दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ने क बावजूद घरेलू बाजार में स्थिर है. गुजरात चुनाव के दौरान भी यही हुआ था. चुनाव बाद कीमतों में हाहाकार मचायेगी सरकार.
रवीश कुमार
ख़ुशी मनाइये कि कर्नाटक में चुनाव हैं वर्ना पेट्रोल का दाम 90 रुपये तक चला गया होता। पिछले 13 दिनों से पेट्रोल और डीज़ल के दाम नहीं बढ़ रहे हैं जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में कच्चे तेल का दाम बढ़ता ही जा रहा है। यह जादू कैसे हो रहा है? जबकि पिछले जून में सरकार ने कहा कि अब से तेल कंपनियां रोज़ के भाव के हिसाब से दाम तय करेंगी। खूब तारीफ हुई। अंदर अंदर यह कहा गया कि रोज़ कुछ न कुछ बढ़ता रहेगा तो जनता को पता नहीं चलेगा।
बिजनेस स्टैंडर्ड के शाइन जैकब की पहली स्टोरी आप पढ़ लीजिएगा। इंडस्ट्री के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि गुजरात चुनानों में भी दाम बढ़ाने नहीं दिया गया, कर्नाटक चुनावों के कारण भी रोक दिया गया है। यानी रोज दाम तय करने की आज़ादी बकवास है। दाम अभी भी सरकार के हिसाब से घट बढ़ रहे हैं। सोचिए अगर इस दौरान कोई चुनाव नहीं होता तब पेट्रोल का दाम कहां तक पहुंच गया होता।
शाइन जैकब ने तेल कंपनियों के सूत्रों के हवाले से लिखा है कि दाम नहीं बढ़ाने के कारण उनके मुनाफे का मार्जिन कम होता जा रहा है। 1 अप्रैल को उनका औसत मार्जिन प्रति लीटर 3 रुपये था जो 1 मई को घट कर दो रुपये से भी कम हो गया है। मार्जिन में 45 प्रतिशत की कमी आई है। तेल कंपनियां काफी दबाव में हैं। सरकार ने 23 अप्रैल से दामों को बढ़ना रोक दिया है। दिल्ली में 74.63 प्रति लीटर प्रेट्रोल और 65.93 रु प्रति लीटर डीजल है। मुंबई में तो 82 रुपया प्रति लीटर पहुंच गया है।
मनरेगा के लाखों मज़दूरों को काम करने के बाद भी छह छह महीने से वेतन नहीं मिला है। मीडिया किस हद तक जनविरोधी हो गया है आप देखिए। किसी मज़दूर को 2000 नहीं मिला तो किसी को 500। इन पैसों के न होने से उन पर क्या बीत रही होगी। उनका घर कैसे चलता होगा। कायदे से इस बात के लिए देश में हंगामा मच जाना चाहिए। जिस मुख्यधारा की मीडिया के लिए आप पैसे देते हैं, उसने इस तरह का काम लगभग बंद कर दिया है। indiaspend नाम की नई वेबसाइट है, इसने रिसर्च कर बताया है कि सरकार के ही आंकड़े कहते हैं कि 1 अप्रैल 2018 तक लाखों मनरेगा मज़दूरों को पैसे नहीं मिले हैं। 2018-19 के लिए सरकार ने मनरेगा का बजट 14.5 प्रतिशत बढ़ाया था तब फिर पैसे क्यों नहीं दिए जा रहे हैं? मनरेगा के लिए सरकार का बजट 55000 करोड़ है। 57 प्रतिशत मज़दूरी का भुगतान नहीं हुआ है।