फिर संपर्क यात्रा पर निकले कुशवाहा, क्या है राजनीतिक मायने
रालोसपा का जदयू में विलय कर चुके उपेंद्र कुशवाहा फिर बिहार यात्रा पर निकले। जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक से पहले इस यात्रा के खास मायने हैं।
जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा फिर बिहार यात्रा पर निकल गए हैं। आज उनकी यात्रा रोहतास से शुरू हुई। पटना से रोहतास के लिए रवाना होने से पहले उन्होंने कहा कि जाति आधारित जनगणना और उसका प्रकाशन होना चाहिए। ऐसा न होने से पिछड़े वर्ग सहित आरक्षण की श्रेणी में आनेवाले वर्गों का नुकसान हो रहा है। विकास योजनाओं के लिए जाति जनगणना जरूरी है। उपेंद्र कुशवाहा ने राष्ट्रीय राजनीति के मुद्दे पर जिस तरह खुलकर बात रखी, उसका भी महत्व है।
आम तौर से किसी दल के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष इस तरह गांव-गांव की यात्रा नहीं करते। ऐसी यात्रा पार्टी के अध्यक्ष ही करते रहे हैं। तो क्या उपेंद्र कुशवाहा की यात्रा जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले पार्टी में स्वीकार्यता के मकसद से किया जा रहा है? संभव है, ऐसा हो। उपेंद्र कुशवाहा ने रालोसपा का जदयू में विलय किया है। बहुत कम समय में वे एमएलसी बने। संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष बने।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए जरूरी है कि पार्टी में सभी नए-पुराने की सहमति हो। पार्टी में पहले से कई पुराने और वरिष्ठ नेता हैं। किसी को उपेंद्र कुशवाहा को राष्ट्रीय अध्यक्ष मानने में कोई हिचक न हो, संभव है इसलिए पार्टी नेतृत्व ने उन्हें बिहार यात्रा के लिए लगाया हो।
उपेंद्र कुशवाहा की बिहार यात्रा का प्रभाव भी दिखता है। पिछली बार जब वे चंपारण से मधुबनी तक गए, तो कार्यकर्ताओं से मिले, नेताओं से मिले। उनकी यात्रा की एक खास बात यह भी थी कि वे जदयू के ऐसे कार्यकर्ताओं के घर भी गए, जिनकी कोरोना से मौत हो गई थी। इस बार भी वे रोहतास पहुंचने पर सबसे पहले ऐसे ही दुखी परिवार के साथ दुख साझा करते दिखे। नासरीगंज में वे ऐसे ही परिवार के बीच गए। मृतक को श्रद्धांजलि दी।
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रोहतास पहुंचने पर कार्यकर्ताओं-नेताओं ने उपेंद्र कुशवाहा का जोरदार स्वागत किया। उनकी यात्रा का संदेश पार्टी कतारों में जा रहा है। इसीलिए माना जा रहा है कि उपेंद्र कुशवाहा की यात्रा उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पहले की भूमिका है। फैसला 31 जुलाई को हो जाएगा, जब कार्यकारिणी की बैठक होगी।
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