PK से सबसे ज्यादा सवाल जातिवाद पर, क्या दे रहे जवाब
जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर बिहार के गांव-गांव घुम रहे हैं। उनसे सबसे ज्यादा सवाल जातिवाद पर पूछा जा रहा है।
नई सोच, नई राजनीति और अच्छे लोगों को जोड़ने के उद्देश्य से गांव-गांव घूम रहे जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर से सबसे ज्यादा सवाल जातिवाद पर किया जा रहा है। लोग पूछ रहे हैं कि बिहार जातिवाद से जकड़ा है, इसे कैसे तोड़ेंगे।
प्रशांत किशोर जातिवाद से न इनकार करते हैं और न ही इसे खत्म करने का दावा नहीं करते हैं। वे स्वीकार करते हैं कि बिहार में जातिवाद है। छपरा की एक सभा में उन्होंने कहा कि बिहार जैसा है, उसे उसी रूप में स्वीकार करके आगे बढ़ने का रास्ता खोजना होगा। हम यह नहीं कह सकते कि पहले बिहार से जातिवाद खत्म करिए, तब हम नई राजनीति शुरू करेंगे। पहले धनबल खत्म करिए, तब हम नई राजनीति शुरू करेंगे।
प्रशांत किशोर ने कहा कि बिहार में जातिवाद है, लेकिन हमेशा जातिवाद पर ही मतदान होता है, यह सच नहीं है। उन्होंने 1985, 1990, 2014 और 2019 का उदाहरण दिया। 1984 में दिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। 1989 में बोफोर्स मुद्दा बना। वीपी सिंह के लिए नारा लगता था-राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है। 2014 में लोगों ने तेज विकास के लिए और 2019 में बालाकोट की घटना के बाद राष्ट्रवाद के नाम पर वोट दिया। स्पष्ट है कि अगर कोई बड़ा मुद्दा हो, नेतृत्व हो, तो बिहार के लोग जातिवाद से ऊपर उठकर वोट डालते हैं। जब कोई मुद्दा नहीं रहता है, तब सभी दल एक समान लगते हैं और तभी लोग जाति को वोट देते हैं।
इसीलिए अगर बिहार में जनता के मुद्दे के पर नई राजनीति खड़ी होती है तो लोग जरूर जाति से उठकर साथ आएंगे।
प्रशांत किशोर ने यह भी कहा कि वे किसी एक जाति को संगठित नहीं कर रहे, बल्कि हर जाति में अच्छे लोग हैं। हर जाति के अच्छे लोगों को जोड़ रहे हैं। हर जाति के अच्छे लोग मिलेंगे और जनता के मुद्दे पर आगे बढ़ेंगे, तो बिहार जहां जकड़ा हुआ है, वह जकड़न टूटेगी। बिहार आगे बढ़ेगा, अपनी नई तकदीर लिखेगा।