प्रशांत किशोर कांग्रेस में जाएंगे! फिर करेंगे ‘बिहार की बात’!
प्रशांत किशोर कल राहुल गांधी से मिले। वे कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। बिहार को दस विकसित राज्यों में शामिल करने का सपना कैसे करेंगे पूरा?
बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को सौ सीटें नहीं मिलेंगी का दावा सच करने के बाद अचानक चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर (पीके) फिर से चर्चा में आ गए हैं। कल उन्होंने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की। तब खबर आई कि वे पंजाब चुनाव को लेकर बात करने गए हैं, लेकिन आज ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि वे कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। इसके साथ ही राजनीतिक अटकलों का दौर शुरू हो गया।
प्रशांत किशोर ने बंगाल चुनाव में सफलता के बाद ही कहा था कि वे चुनाव प्रबंधन करनेवाली अपनी कंपनी आई-पैक से अलग हो रहे हैं। तब उन्होंने आगे की रणनीति का खुलासा नहीं किया था। अगर वे कांग्रेस में शामिल होते हैं, तो बिहार और यूपी की राजनीति पर असर पड़ना तय है।
प्रशांत एक समय जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे। बाद में सीएए का विरोध करने के कारण उन्हें जदयू से बाहर होना पड़ा। अगल होने के बाद प्रशांत किशोर ने कहा था कि प्रदेश के लिए उनका एक सपना है। वे चाहते हैं कि बिहार अगले दस वर्षों में देश के विकसित राज्यों में शुमार हो। उन्होंने इस उद्देश्य के लिए बिहार की बात शुरू की थी।
सवाल है कि कांग्रेस में शामिल होकर वे बिहार को लेकर अपना सपना कैसे पूरा करेंगे? बिहार कांग्रेस की पहले से कमेटी है। उसके नेता हैं। उसका कार्यक्रम है। कांग्रेस में रहते हुए बिहार कांग्रेस से अलग या उसकी उपेक्षा करके वे अपना सपना कैसे पूरा करेंगे? क्या कांग्रेस उन्हें नया प्रयोग करने के लिए अपना आधार समर्पित करेगी?
प्रशांत किशोर ने फरवरी, 2020 में कहा था कि विकसित बिहार के सपने के साथ अगर पंचायत चुनाव में युवा मुखिया जीतें, तो बदलाव की प्रक्रिया को गति दी जा सकेगी।
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प्रशांत किशोर न वामपंथी विचार के हैं और न ही दक्षिणपंथी। वे मध्यमार्गी (सेंट्रिस्ट) राजनीति के पैरोकार रहे हैं। कांग्रेस भी मध्यमार्गी राजनीति ही करती है। अगर प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल हुए, तो वे सबसे ज्यादा जदयू के युवा आधार को अपनी तरफ खींचेंगे। हालांकि पिछले साल उन्होंने पटना के प्रेस वार्ता में कहा था कि उनके साथ जुड़े युवाओं में 30 फीसदी ऐसे हैं, जो कभी भाजपा के लिए काम कर चुके हैं। तय है कि पीके के कांग्रेस में प्रवेश से बिहार में भाजपा को भी नुकसान होगा।
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