कुमार अनिल
प्रशांत किशोर बार-बार जमीन की राजनीति, बिहार की मिट्टी से नेता बनाने की बात करते हैं, लेकिन अपनी पार्टी का पहला कार्यकारी अध्यक्ष विदेश में नौकरी करनेवाले को बनाया। मीडिया को बताया जा रहा है कि किस-किस देश में मनोज भारती राजदूत रहे, कैसे आईआईटी की पढ़ाई की, लेकिन एक बार भी बता नहीं पा रहे कि मनोज भारती ने कभी दलितों के लिए आवाज उठाई, कभी सड़क पर प्रदर्शन किया, कभी दलितों के आंदोलन के कारण मुकदमे हुए, जेल जाना पड़ा। प्रशांत किशोर बिहार को बदलने का दावा करते हैं, लेकिन जमीन से जुडे नेता को उन्होंने मौका नहीं दिया।
दरअसल प्रशांत किशोर ने मजबूरी में मनोज भारती को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। भारती को अध्यक्ष बनाना पीके की सफलता नहीं है, जैसा कि मीडिया में प्रचारित किया जा रहा है, बल्कि उनकी दो विफलताओं का परिणाम है।
प्रशांत किशोर की पहली विफलता यह है कि वे साल भर से पदयात्रा कर रहे हैं, लेकिन एक साल में जमीन से जुड़े, दलितों के लिए लड़नेवाले किसी नेता को प्रोजेक्ट नहीं कर सके। इससे यह भी साफ है कि नई राजनीति की बात करने वाले प्रशांत किशोर दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अरविंद केजरीवाल, मायावती या नीतीश कुमार की तरह सुप्रीमो वाली पार्टी ही बना रहे हैं। एक साल का वक्त कम नहीं होता, इस दौरान उन्होंने किसी दलित नेता को प्रोजेक्ट नहीं किया। जन सुराज का मतलब प्रशांत किशोर ही बना रहा।
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प्रशांत किशोर की दूसरी विफलता यह है कि वे दलितों के लिए लड़ने वाले किसी जुझारू नेता को दूसरी पार्टी से नहीं तोड़ पाए। दूसरी पार्टी से कुछ नेता उनके साथ गए हैं, लेकिन वे आभाहीन, जमीनी संघर्ष से कटे हुए नेता हैं, जिन्हें वे अध्यक्ष नहीं बना सकते थे। कुल मिला कर प्रशांत किशोर ने न खुद जमीन से नेता तैयार किया और न ही दूसरी पार्टी से तोड़ पाए। इस मजबूरी में उन्हें दशकों तक विदेश में नौकरी करने वाले विदेश सेवा के अधिकारी को अध्यक्ष बनाना पड़ा।
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