पीएम की घोषणा 14 अगस्त विभीषिका दिवस, क्यों हो रही आलोचना
आज अचानक प्रधानमंत्री मोदी ने हर साल 14 अगस्त को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने का एलान किया। सोशल मीडिया पर क्यों हो रही आलोचना?
आज सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया- देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है।
प्रधानमंत्री ने यह भी ट्वीट किया कि यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मजबूत होंगी।
प्रधानमंत्री मोदी की घोषणा के बाद सोशल मीडिया पर लोग सवाल उठा रहे हैं। न्यूज क्लिक ने लिखा-सच कहें तो आज सन् 47 के बंटवारे से भी ज़्यादा सन् 92 में बाबरी मस्जिद गिराकर पैदा किए गए बंटवारे का दर्द गहरा है। फिर 2002 गुजरात दंगों की विभीषिका कौन भूल सकता है। उसके बाद भी 2014 से तो लगातार हिंदू-मुस्लिम के नाम पर तेज़ होती जा रही विभाजन की राजनीति देश को बहुत नुकसान पहुंचा रही है। यह दुख, ये दर्द कैसे दूर होगा मोदी जी!
लेखक और कवि कौशिक राज ने कहा-आज #PartitionHorrorsRemembranceDay मनाने वालों के पूर्वज खुद उन हॉरर्स के लिए ज़िम्मेदार थे। बंटवारे के वक्त आरएसएस और हिंदू महासभा हिंदुओं को भड़काते थे कि पाकिस्तान में जो हो रहा है उसका बदला लो। गांधी इसी सोच के ख़िलाफ़ संघियों से लड़े। इसलिए इन लोगों ने उन्हें गोली मार दी।
पीटीआई की खबर के अनुसार गृह मंत्रालय ने 14 अगस्त के संबंध में अधिसूचना जारी कर दी है।
सीपीएम के सीताराम युचेरी ने कहा-यू नेशन थ्योरी आज भी जिंदा है। उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया का एक कार्टून भी शेयर किया है जिसमें एक भगवा कपड़े में व्यक्ति जिन्ना की तस्वीर उठाए है। वह कह रहा है आप जो हैं वहीं हम हैं।
राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने प्रधानमंत्री की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्रधानमंत्री 1947 की त्रासदी के बहाने देश में सांप्रदायिक उन्माद की राजनीति कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि 2002 में गुजरात दंगे ने क्या कम घाव दिए हैं? क्या प्रधानमंत्री गुजरात दंगे की विभीषिका पर चर्चा कराएंगे? गगन ने कहा कि मोदी सरकार हर स्तर पर विफल हो चुकी है, इसलिए अब वह खुलकर सांप्रदायिक राजनीति कर रही है।
वैसे रिपब्लिक टीवी और भाजपा के कुछ बड़े नेता प्रधानमंत्री के ट्वीट को रिट्वीट कर रहे हैं। अभी तक अन्य दलों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। संभव है रात-रात तक या कल तक अन्य दल भी अपनी राय रखेंगे।
देखना है कि कहीं यह सद्भाव फैलाने के बदले पड़ोंसी देश और खास समुदाय के खिलाफ प्रचार का दिवस न बन कर रह जाए। इसे सद्भाव दिवस भी नाम दिया जा सकता था और तब लोग याद करते कि बंटवारे का सबसे ज्यादा दर्द झेलनेवाले पंजाब में कैसे-कैसे लेखकों ने विभिन्न संप्रदायों में सद्भाव, प्रेम के बीज बोए। नफरत की आंधी के खिलाफ भाईचारे को बढ़ावा दिया। मानवीयता को बढ़ावा दिया।
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