PM ने नालंदा खंडहर दिखाया, पर नहीं बताया नया कैंपस किसने बर्बाद किया
PM ने नालंदा खंडहर दिखाया, पर नहीं बताया नया कैंपस किसने बर्बाद किया। जदयू ने कहा प्रधानमंत्री के राजनीतिक हस्तक्षेप से आजिज 18 देशों ने मदद से हाथ खींचे।
जदयू ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेशी मेहमानों को नालंदा खंडहर तो दिखाया, लेकिन यह नहीं बताया कि नीतीश कुमार ने ऐतिहासिक नालंदा विवि की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय नालंदा विवि का नया कैंपस बनाया। नोबेल विजेता अमर्त्य सेन को जोड़ा और 18 देशों को मदद के लिए तैयार किया, लेकिन केंद्र सरकार के राजनीतिक हस्तक्षेप से सभी देशों ने मदद से हाथ खींच लिये।
पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और विधानपार्षद नीरज कुमार तथा राष्ट्रीय सचिव सह विधानपार्षद रवींद्र प्रसाद सिंह ने प्रेस वार्ता में कहा कि जिस नालंदा विश्वविद्याल के पुनरुद्धार के लिए 18 देशों के नेताओं ने हरी झंडी दी थी, आज उन देशों ने केंद्र सरकार के नालंदा विश्वविद्यालय के काम में राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते अपने हाथ खींच लिए। बीजेपी पर आरोप लगाते हुए नेताओं ने कहा कि जिस मकसद से नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कोशिश की थी उस मकसद को बीजेपी ने अनुचित राजनीतिक हस्तक्षेप से बर्बाद कर दिया।
जदयू नेताओं ने आरोप लगाया कि नालंदा विश्वविद्यालय में जहां इतिहास, बुद्धिस्ट स्टडी, फिलोसॉफी और कंपेरेटिव रिलीजन की पढ़ाई बंद कर दी गई वहीं केंद्र सरकार की गलत नीतियों के चलते अंग्रेजी, संस्कृत और भारतीय दर्शनशास्त्र के विषय को सिलेबस में जोड़ दिया गया। पार्टी नेताओं ने पूछा कि बीजेपी यह बताए कि ऐतिहासिक धरोहर नालंदा विश्वविद्यालय को राजनीति में घसीटने की कोशिश क्यों की गई। आखिर क्या कारण है कि 13 सालों से नालंदा विश्वविद्यालय का चल रहा निर्माण कार्य अबतक पूरा नहीं हो पाया? आखिर क्या कारण रहा कि जिस नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार को लेकर चीन की सरकार मदद दे रही थी उसने मदद देना बंद कर दिया और खुद का नालंदा विश्वविद्यालय बना लिया? क्या यह सही नहीं है कि अपने राजनीतिक फायदे के लिए केंद्र सरकार ने तत्कालीन कुलपति अमर्त्य सेन पर निराधार आरोप लगाए और उन्हें गलत तरीके से निशाना बनाया? जिन आरोपों के आधार पर नालंदा विश्वविद्यालय के दूसरे कुलपति सिंगापुर के जॉर्ज यो ने अपना पद छोड़ा क्या वो सही नहीं है? क्या यह सही नहीं है कि केंद्र सरकार नालंदा विश्वविद्यालय के कामकाज में हस्तक्षेप कर रही है। क्या ये सही नहीं है कि केंद्र के अनुचित हस्तक्षेप के चलते विश्वविद्यालय के कई प्रोफेसरों ने अपनी नौकरी छोड़ दी?
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