प्रधानमंत्री की आलोचना के लिए एक लक्ष्मण रेखा हो : कोर्ट

जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आप पीएम के लिए जुमला शब्द का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं?

जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि आप पीएम के लिए जुमला शब्द का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? आलोचना के लिए एक लक्ष्मण रेखा होनी चाहिए।

उमर खालिद के वकील त्रिदीप पायस ने कोर्ट से कहा कि सरकार या सरकार की नीतियों की आलोचना करना कानून का उल्लंघन नहीं है। सरकार की आलोचना करना कोई जुर्म नहीं है। उमर खालिद सरकार के खिलाफ बोलने की वजह से यूएपीए के तहत पिछले 583 दिनों से जेल में हैं। हम असहिष्णु नहीं हो सकते।

दिल्ली उच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया में कई लोगों ने ऐसे बयान की कॉपी शेयर की है, जिसमें सरकार में शामिल लोगों ने ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वादे को जुमला करार दिया है। ट्विटर पर एक ने गृहमंत्री अमित शाह का अखबार में प्रकाशित बयान शेयर किया है, जिसमें उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के काते में 15 लाख रुपए भेजने की बात जुमला थी।

कोर्ट ने 22 अप्रैल को कहा था कि उमर खालिद का 2020 में अमरावती में दिया बाषण प्रथम दृष्टि में स्वीकृत करने लायक नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि खालिद का भाषण ऑफेंसिव और हेटफुल है। ऑफेंसिव अर्थात किसी को नुकसान पहुंचानेवाला है। हेटफुल मतलब नफरत फैलानेवाला।

इस बीच अमेरिकी संस्था Commission on International Religious Freedom ने भारत को लगातार तीसरे साल सर्वधर्म समभाव वाला लोकतांत्रिक देश मानने से इनकार करते हुए भारत को खास धर्म के प्रति झुकाव रखनेवाले (country of particular concern अर्थात CPC) देशों की श्रेणी में रखा है। इस अमेरिकी संस्था की 2022 की वार्षिक रिपोर्ट सोमवार को जारी हुई, जिसमें भारत को धार्मिक स्वतंत्रता की दृष्टि से लोकतांत्रित नहीं माना गया। भारत ने इस रिपोर्ट पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

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