दलित राष्ट्रपति मंदिर अपवित्र होने के चलते नहीं बुलाये गये ?
रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति हैं. देश के प्रथम नागरिक हैं. लेकिन दलित हैं. उन्हें राम मंदिर भूमि पूजन में नहीं बुलाया गया. जबकि ब्रहम्ण मोहन भागवत किसी पद पर नहीं है तो उन्हें क्यों बुलाया गया?
सोशल मीडिया में यह सवाल बड़ी मारक अंदाज में लोग उठा रहे हैं. याद रहे कि 5 अगस्त को राममंदिर के शिलान्यास व भूमि पूजन कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इस कार्यक्रम में सौ से अधिक लोग आमंत्रित थे. विशेष अतिथि के रूप में डॉयस पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा मंदिर ट्रस्ट के चेयरमैन नृत्यगोपाल दास, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, यूपी की राज्यपाल आनंदी बेन, मुख्यमंत्री आदित्य नाथ मौजूद थे.
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जबकि इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति को नहीं बुलाया गया. लोग सोशल मीडिया पर सवाल करके पूछ रहे हैं कि आखिर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को क्यों नहीं बुलाया गया. क्या उन्हें इसलिए नहीं बुलाया गया कि वह दलित समाज से हैं?
गौरतलब है कि वर्णवादी समाज में सवर्णों का एक वर्ग दलितों के मंदिर प्रवेश को अनुचित मानता है. यहां तक कि इस वर्ग की यह भी मान्यता है कि दलितों के मंदिर प्रवेश से मंदिर अपवित्र हो जाता है.
अभी कुछ वर्ष पूर्व बिहार के दलित मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी मिथिला के एक मंदिर में गये तो वहां के लोगों ने उनके जाने के बाद मंदिर को गंगाजल से पवित्र किया था.
महाराष्ट्र के मंत्री डॉ नितिन राउत ने भी ये सवाल उठाया है. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति जी को राम मंदिर भूमिपूजन कार्यक्रम से क्यों दूर रखा गया है? क्योंकि वो दलित है? संघ प्रमुख मोहन भागवत की भूमि पूजन कार्यक्रम में मौजूदगी पर सवाल उठाते हुए डॉ नितिन राउत ने कहा कि आखिर आरएसएस चीफ वहां किस हैसियत से है? उन्होंने बीजेपी पर राष्ट्रपति का अपमान करने और सरकार पर मनुवादी सोच दर्शाने का इल्जाम लगाया है.
सोशल मीडिया पर समारोह के के बाद भी इस मुद्दे पर जोरदार बहस चल रही है. कहा जा रहा है कि कोरोना संकट के कारण सोशल डिस्टैंसिंग के पालन के चलते अगर किसी व्यक्ति को ना बुलाने की मंशा ती तो कम से कम देश के प्रथम नागरिक का नाम नहीं काटा जाता. क्या राष्ट्रपति देश के पांच लोगों की सूची में शामिल होने के भी लायक नहीं हैं?