पटना विश्वविद्यालय को सेंट्रल दर्जा नहीं मिलने पर ख़ूब हाय-तौबा मचा है. क्या पीयू की बर्बादी के लिये सिर्फ़ राजनेता ही ज़िम्मेदार हैं? पूर्ववती छात्रों की ज़िम्मेवारी कुछ भी नहीं बनती है?
सेराज अनवर
जिस संस्थान से विद्या पाकर देश- दुनिया में परचम लहराया, रोज़ी- रोटी कमा रहे, घर- परिवार चला रहे(पॉलिटिशन कि बात नहीं कर रहा हूँ) वो अपनी आँखों के सामने विद्या की जन्मदाता माँ को खंडहर हो ते कैसे देख सकता ? दरसल, शिक्षा ग्रहण करने का अर्थ केवल एक अदद नौकरी पाना रह जाये तो उसी वक़्त समाज- संस्थान के प्रति दायित्व मर जाता है.हम मानते हैं, स्टेट की जवाबदेही शिक्षा के प्रति ज़्यादा है. पीयू की बर्बादी में राजनीतिज्ञों का बड़ा हाथ है. सिर्फ़ यह कह देने से दायित्व का निर्वाह नहीं हो जाता कि पीयू का गौरवशाली इतिहास रहा है.
भविष्य भी भूत की तरह ही चमकदार हो इसके लिए आप का योगदान क्या है?इस सच्चाई से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए कि पहले के छात्र भी पीयू की तबाही का मंज़र देखते रहे हैं.
कहां हैं वे नौकरशाह
मोदी जी फ़रमा रहे थे देश में हर पाँच नौकरशाह में तीन पीयू के मिल जाएँगें. कहाँ हैं वो नौकरशाह? क़ाबिल बनाने वाले कभी अपने संस्थान की याद नहीं आती उन्हें? उन नौकरशाहों को दर्द नहीं सालता कि उनका संस्थान आज किस हालत में है. शिक्षा का मतलब यदि सिर्फ़ जॉब है तो ऐसी शिक्षा पर लानत है .
कभी शिक्षण संस्थानों के सुधार के लिये पूर्ववती छात्रों- नौकरशाहों ने मिलजुल कर मुहिम चलायी? शिक्षा का पूरा संचालन नौकरशाहों के हवाले है, और हाल तो देख ही रहे हैं. नौकरशाहों से भी भ्रष्ट है क्या कोई. जितने घपले – घोटाले होते हैं, नौकरशाहों का ही हाथ होता है उसमें. पी यू ने ऐसे ही नौकरशाह तो पैदा नहीं किए?
आज जितनी बहस चल रही है कल पूर्ववर्ती छात्रों या विपक्ष ने ये सवाल क्यों नहीं उठाया था? यदि पीयू से सच्चा प्यार करते हैं , इस पर गर्व है तो सब मिल कर उसी गौरवपूर्ण स्थान पर खड़ा कर दें और जब मोदी जी पैसा देने लगें , (गारंटी नहीं तब वो सत्ता में रहेंगें या नहीं)तो कहें अब इसकी ज़रूरत नहीं है.
बहानेबाजी
ये सब बहानाबाज़ी है, टॉप 20 में आकर दिखाइये. अरे जनाब! जब टॉप 20 में आ ही जाएँगें तो आपकी मदद की क्या ज़रूरत है? ये तो वही बात हुई की पहले सत्ता में आईए तो वोट देंगें. यदि 2014 में जनता भी यही कहती तब आप कहाँ होते साहब!