पटना, ८ नवम्बर। एक्स–रे की खोज चिकित्सा–विज्ञान हीं नहीं संसार की मानव–सभ्यता के विकास में भी बड़ी युगांतरकारी घटना है। यह आधुनिक–चिकित्सा पद्धति में क्रांतिकारी परिवर्तन की जननी सिद्ध हुई,जिसने रोगों की जाँच में हीं नही उसके निदान में भी महत्त्वपूर्ण परिणाम दिया है। इसीलिए इसके आविष्कारक सर विल्हेल्म कोन्नाड रोएंटजन वंदनीय वैज्ञानिक हैं।
यह विचार आज यहाँ बेउर स्थित इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एजुकेशन ऐंड रिसर्च में, विश्व रेडियोग्राफ़ी दिवस पर आयोजित संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए, पटना विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि, विगत एक सौ वर्षों में, एक्स–रे का उपयोग अनेक क्षेत्रों में हुआ है और तकनोलौजी का व्यापक विकास हुआ है।
“रेडियो इमेंज़िंग टेक्नोलौजी में वैज्ञानिक उपलब्धियाँ” विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी के मुख्य–वक़्ता और इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के वरिष्ठ रेडियोलौजिस्ट डा उमाकांत प्रसाद ने अपना वैज्ञानिक पत्र प्रस्तुत करते हुए कहा कि, रेडियो विकिरण की खोज संसार के लिए कितना महत्त्वपूर्ण था, उसे इस बात से समझा जा सकता है कि, फ़िज़िक्स का पहला नोबेल पुरस्कार इसी खोज के लिए, वर्ष १९०१ में हीं इसके आविष्कारक विल्हेल्म को दिया गया, जिन्हें ‘सर‘ की उपाधि भी दी गई। डा प्रसाद ने रेडियो इमेजिंग टेक्नोलौजी की उपलब्धियाँ और संभावनाओं के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए, विद्यार्थियों से ख़ूब लगन के साथ पढ़ने और आगे बढ़ने का आग्रह किया। इस अवसर पर डा यादव को संस्थान का सर्वोच्च सम्मान ‘प्रोफ़ेशनल एक्सिलेंस अवार्ड‘ से सम्मानित किया गया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, संस्थान के निदेशक–प्रमुख डा अनिल सुलभ ने कहा कि, ८ नवम्बर १८९५ को जिस दिन रेडियो–विकिरण से संसार को परिचय हुआ, तब से अब तक लगभग सवा सौ साल में, इसमें हुई वैज्ञानिक उपलब्धियों ने चिकित्सा विज्ञान की सूरत हीं बदल दी है। रेडियो–विकिरणों का प्रयोग केवल शरीर के आंतरिक अस्थियों और अंगों के चित्र लेने के लिए और रोगों की पहचान के लिए हीं नहीं, बल्कि कैंसर जैसे घातक रोगों सहित अनेक रोगों के उपचार में भी किया जा रहा है। एक्स–रे फ़िल्म लेने से आरंभ हुई रोग–पड़ताल की यह विधा कंप्यूटराइज्ड आधुनिक उपकरणों के विकास से चिकित्सा–विज्ञान की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण और अनिवार्य हिस्सा बन गई है। डा सुलभ ने कहा कि, इस क्षेत्र में विशेषज्ञों और तकनीशियनों के लिए असीमित संभावनाएँ हैं। तेज़ी से बढ़ रही इस तकनीक में विश्व स्तर पर विशेषज्ञों की भारी ज़रूरत है। इस ज़रूरत और कमी को पूरा करने के लिए केवल भारत वर्ष में हीं हज़ारों–हज़ार युवाओं की आवश्यकता है।
इसके पूर्व संस्थान के रेडियो इमेजिंग टेक्नोलौजी विभाग की प्रभारी अध्यक्ष समिता झा ने संगोष्ठी का विषय प्रवेश किया।संगोष्ठी में वरिष्ठ रेडियोग्राफ़र सरोज कुमार राय, बी एम आर आइ टी के छात्र ओम् प्रकाश सिंह तथा राहुल कुमार ने भी अपने वैज्ञानिक–पत्र प्रस्तुत किए। अतिथियों का स्वागत संस्थान के निदेशक आकाश कुमार तथा धन्यवाद–ज्ञापन प्रशासी अधिकारी सूबेदार मेजर एस के झा ने किया। रेडियो–टेक्नोलौजिस्ट और ट्यूटर संतोष कुमार सिंह ने मंच का संचालन किया। इस अवसर पर डा अनूप कुमार गुप्ता, प्रो रमा मंडल, डा राजेश कुमार झा, प्रो संजीत कुमार, आयोजक छात्रगण फैज़ल इमाम, आदित्य मिश्र, मो ऐहेतेशाम तथा अभिषेक चौधरी समेत बड़ी संख्या में संस्थान के चिकित्सक, कर्मी तथा छात्रगण उपस्थित थे।